Book Title: Tattvabodhak Kalyan Shatak
Author(s): Hemshreeji
Publisher: Hemshreeji

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Page 43
________________ तवान पडयो तेने तरतां २ थाक लाग्यो त्यारे दीप ऊपर बेसीने विसामो खाय छे ने एम विचारे छे आ थोडं पाणी छे तेने हमणा तरी जईश तेम आ संसार समुद्रने विशे तरतां २ थाक लाग्यो त्यारे यथाख्यात चारित्र रूपी दीप मल्यो त्यां बेसीने विसामो खाय छे ने एम विचारे छे के म्हारे हवे थोडी संसार छे ते हमण तरी जईश ॥ १३ ॥ हवे सजोगी गुणठाणानी स्थिती कहेछ जघन्य अंतर मुहुर्त उत्कृष्ट देशे उणी पूर्व कोड़ी वरष नी हवे तेनो लक्षण कहे छे तिहां चारे घा. तिया कर्मनो क्षय कन्यो मन वचन कायाना जोग मोकला छे हाले छे चाले छे देशना आपे ॥ १४ ॥ हवे अजोगी गुणठाणानी स्थिती कहे छे पांच लघु अक्षरनी अ इ उ ऋ ल अघाती कर्मनो क्षय कन्यो मन वचन कायाना योग रूंधे सेलेशी करण करे ॥ संपूर्ण ॥

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