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(३६) मिश्रथाय मिश्र गुणाणा वालाने जैनधर्म ऊपर राग नथी देशपण नथी कदी आवेतो अंतर मुहूर्त सुधी रहे ॥ ४ ॥ हवे चोथु अविरती गुणठाणानी स्थिती कहे छे ॥ जघन्य अंतर मुहुर्तनी ने उत्कृष्टी तेत्रीस सागरोपमनी ने मिश्र थी अनंत गुणों विशुद्ध ने देश विरतीथी हीण तेमां थी अनंतानु बंधी चौकडी ने त्रण मोहनी ते सात प्रकृति जाय ने अविरती गुणठाणे वरततां त्रण प्रकारे जीव छे एक जीव जाणे छे आदरतो नथी ने पालतो नथी, ते श्रेणिक राजानी पेठे जाणवो. एकजीव जाणे छे आदरे छे ने पालतो नर्थी ते पडता आसरी जाणवो, एक जीव जाणे छे आदरतो नथी ने पाले छे ते अनुत्तर वैमान ना देवता जाणवा ॥ ५॥ हवे पांचमां देशविरती गुणठाणानी स्थिती कहे छ ॥ जघन्य अ. तर मुहूर्तने उत्कृष्टी देश उणी पूर्व कोडी वर्षनी हवे अविरती गुणगणाथी अनंत गुणो विशुद्धने