Book Title: Tattvabodhak Kalyan Shatak
Author(s): Hemshreeji
Publisher: Hemshreeji

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Page 39
________________ (३७) परमत्तथी हीन तेमांथी बीजा कषायनी चोकडी गई तेथी विशुद्ध थयो, हवे तेहनो लक्षण कहे छे देशविरती गुणठाणे वर्ततो जीव नोकारसीथी मांडी ने बार व्रत उचरे पण देश करी उणो तेमांथी सर्व विरती गुण उणो छे ॥ ६ ॥ हवे छट प्रमत्त गुणगणानी स्थिती कहेछे ॥ जघन्य अंतर मुहूर्त उत्कृष्टी देशे उणी पूर्व कोडी वर्षनी देशविरतीथी अनंत गुणो विशुद्ध ने अप्रमत्तथी हीण तेमांथी त्रिजा कषायनी चौकडी गई तेथी करीने विशुद्ध थयो । हवे तेहनो लक्षण कहेछे ॥ प्रमत्त गुणठाणा वालो पांच प्रमादें करीने सहित छे तेथी तेना अध्यवसाय पण मलीन छे तेनुं चारित्र पण मलीनछे ॥ ७ ॥ हवे अप्रमत्त गुणठाणानी स्थिती कहेछे ॥ जघन्य अंतरमुहर्तनी ने उत्कृष्टी देशे उणी पूर्व कोडी वर्षनी हवे अप्रमत्तथी अनंत गुणो विशद्ध ने अपूर्वथी अनंत गुणो हीण ने तमांथी सोगने अरतिगई, हवे तेना लक्षण कहेछ

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