Book Title: Tattvabodhak Kalyan Shatak
Author(s): Hemshreeji
Publisher: Hemshreeji

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Page 40
________________ ( ३८ ) के अप्रमत्त गुणठाणा वालो पांच प्रमादे करी रहित होय तेथी तेना चारित्र पण निर्मल होय ते तेना अध्यवसाय पण निर्मल होय ॥ ८ ॥ हवे अपूर्व गुणठाणानी स्थिती कहे छे || जघन्य एक समय उत्कृष्ट अंतर मुहूर्तनी, हवे अप्रमत्तथी अनंत गुणो विशुद्ध ने अनिवृत्ती बादर गुणगणाथी अनंत गुण हीन तेमांथी भय शोग हास्य रति गई थी विशुद्ध थयो । हवे तेनो लक्षण कहे छे अपूर्व गुणठाणे वर्ततो जीव वण करण करे छे यथा प्रवृति करण अपूर्व करण अनिवृति करण समय समय पल्योपमनो असंख्यातमो भाग खपावतो खपावतो पांच वाना करे स्थिति घातरस, घात गुण, संक्रमणगुण, श्रेणी, अपूर्व बंध ए पांच वाना तेज करतो करतो अंतर मुहूर्त ते यथाप्रवृति करण करे समय समय पांच वाना खपावतो अंतर मुहूर्त यथा प्रवृति करण थी अनंत गुण विशुद्ध अपूर्व करण करे समये समये पांच वाना

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