Book Title: Tattvabodhak Kalyan Shatak
Author(s): Hemshreeji
Publisher: Hemshreeji

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Page 37
________________ (३५) कहिये त्यारे सामो तर्क करे छे के कोई दिवस मोक्षे जसे तोके हां भवि हसे तो कोईकवार समकित पामी मोक्ष हेतूनी क्रिया करी मोक्षे जसे माटे तेने मिथ्यात्व गुणाणुं कहिये। हवे सास्वा. दन गुणठाणानुं लक्षण कहेछे ॥ जघन्य उत्कृष्टी छ आवलीनी स्थिती हवे सास्वादन गुणठाणुं मिथ्यात्वथी अनंत गुणो विशुद्धि ने मिश्रथी अनंतगुणो हीन तेमांथी नपुंसक वेदने मिथ्यात्व मोहनी बे प्रकृति गई तेथी करीने विशुद्ध थयुं जेम कोई माणसे खीर खाधीहोय अने पछी वमी नाखे पण तेनुं स्वाद जाय नहीं । हवे मिश्र गुणठाणानी स्थिती कहे छ॥ जघन्य एक समय उत्कृष्टि अंतर मुहूतनी होय सास्वादनथी अनंत गुणो विशुद्ध ने अविरतीथी अनंत गुणो हीन तेमाथी अनंतानु बंधी चौकडीने स्त्री वेद ए पांच प्रकृती गई तेथी विशुद्धथयो, हवे मिश्र गुणाणां नुं लक्षण कहेछ । समकितने मिथ्यात्व बे मलीने

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