Book Title: Tattvabodhak Kalyan Shatak
Author(s): Hemshreeji
Publisher: Hemshreeji
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(३०) ए पाच दंडकनो निकल्योजीव तिर्थकर, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव विना ओगणीस संपदा पामें । तेउ, वाउ, नो निकल्यो जीव सात रत्न एकेंद्री अस्व, गज, सहित नव संपदा पामें । त्रण विकलेंद्री नो निकल्यो जीव तिर्थकर, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, केवली विना अठार संपदा पामें । वैमानिक मां प्रथम देवलोक अने बीजा देवलोक नो नीकल्यो जीव तेवीस संपदा पामें वीजा देव लोकथी मांडी आठमां देवलोक सुधी नो निकल्यो जीव सात एकेंद्री रत्न विना सोल संपदा पामें। नवमां देवलोकथी मांडी नव ग्रैवेके सुधीनो नि. कल्यो जीव सात एकेंद्री, अश्व, गज विना चउद संपदा पामें । पांच अनुत्तर विमान नो निकल्यो जीव वासुदेव विना आठ निधान पामें ॥
॥हये छब्बीसमुं धर्म द्वार कहे छ । तीयच पंचेंद्री, मनुष्य ने करणी रूपी धर्म छे बावीस दंडके करणी रूपी धर्म नथी॥

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