Book Title: Tattvabodhak Kalyan Shatak
Author(s): Hemshreeji
Publisher: Hemshreeji
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(२१) छबीस सागरोपमनुं। पांचमें ग्रेवेके जछन्य छबीस सागरोपमनुं । उत्कृष्टो सत्तावीस सागरोपमर्नु । छठेग्रेवेके जघन्य सत्तावीस सागरोपमनुं । उत्कृष्टो अठ्ठावीस सागरोपमनुं । सातमे ग्रेवेके जघन्य अठ्ठावीस सागरोपमनुं । उत्कुष्टो ओगणतीस सागरोपमर्नु । आठमें ग्रेवेके जघन्य ओगणतीस सागरोपमनुं । उत्कृष्टो तीस सागरोपमर्नु । नवमें ग्रेवेके जघन्य तीससागरापमनुं। उत्कृष्टो एकतीस सागरोपमर्नु। विजय, वैजयंत, जयंत, अपराजीत ए चार विमाने जघन्य एकतीस सागरोपमर्नु । उत्कृष्टो तेत्रीस सागरोपमनुं । सर्वार्थ सिद्धी जघ. न्य तथा उत्कृष्टो आउखो तेवीस सागरोपम पूरो॥
॥ हवे ओगणीसमें पर्याप्ती द्वार कहे छे ॥ पर्याप्ती छ ना नाम कहे छ । अहार पर्याप्ती, शरीर पर्याप्ती, इंद्रि पर्याप्ती, सासोस्वास पर्याप्ती, भाषा पर्याप्ती, मनः पर्याप्ती ॥ नारकी, दस भुवन

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