Book Title: Tattvabodhak Kalyan Shatak
Author(s): Hemshreeji
Publisher: Hemshreeji
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( २२ )
पती, व्यंतर, वैमानिक, तीर्यच पंचेंद्री, मनुष्य ए सोल दंडके छे पर्याप्ती | पांच थावरने चार पर्याप्ती अहार, शरीर, इंद्री, सासोवास ॥ बेइंद्री, इंद्री, चोरिंद्री, असन्नी पंचेंद्री ने मन विना पांच पर्याप्ती होय ॥
॥ बीस अहारक द्वार कहे छे !
अहारना ऋण नाम || ओझा अहार, रोम अहार, कवल अहार । नारकी, दस भुवनपती, व्यंतर, योतीषी, वैमानिक, पांच थावर ए ओगणीसदंडके
अहार, ओझा, ने रोम ए बे तिर्यंच पंचेंद्री अने मनुष्य aण विककेंद्री ए पांच दंडके त्रण अहार पामें ॥
|| इकीसमुं गता गती द्वार कहे छे ||
नारकी थी चवीने तिर्यंच पंचेंद्री अने मनुष्य माही जाय अने ए वे मांही आवे | दसभुवनपती

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