Book Title: Tattvabodhak Kalyan Shatak
Author(s): Hemshreeji
Publisher: Hemshreeji

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Page 11
________________ वैक्रीय समुद्घात ४, तेजस समुद्घात ५, आहा. रक समुद्घात ६, केवली समुद्घात ७॥ नारकीने। वायुने चार समुद्घात । वेदनी १, कषायर, मरणांतिक ३, वैक्रीय ४, ए चार होय । दसभवनपती । व्यंतर, योतीषी, वैमानिक, तीर्यच पंचेंद्री । ए चउ दंडके पांच समुद्घात । वेदनी १, कपाय २, मरणांतिक ३, वैक्रीय ४, तेजस ५, वृथ्वी, पाणी, अमी, वनस्पती, त्रण्य विकलेंद्री। ये सात दंडके । त्रण्य समुद्घात । वेदनी १, कषाय २, मरणांतिक ३। मनुष्यने सात समुद्घात ॥१०॥ ॥ इग्यारभु दृष्टी द्वार कहे छ । दृष्टि ३ना नाम । समकित दृष्टि, मिश्रदृष्टि २, मिथ्यात्वदृष्टि ३ ॥ नारकी ॥ दश भवनपती, व्यंतर, योतीषी, वैमानीक, तीर्यच पंचेंद्री। मनुष्य ए सोला दंडकें । त्रग्यदृष्टि । पांच थावरने ।

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