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श्रीमन् देवसूरिकृत उपधानप्रकरण उपधान तपके उद्यापनरूप मालारोपणका विधि
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४७८
(३०) त्रिंश स्तंभ--श्रावककी दिनचर्याका वर्णन ....
४६९-४९२ शयनसे उठने का विधि .... .... .... .... अईस्कल्प कथनानुसार पूजाविधि .... .
लघुस्नात्रविधि ..... .... (३१) एकात्रंश स्तंभ---सोलवा अंत्य संस्कारका वर्णन
आराधनाविधि .... .... .... .... .... .... ४९९ क्षामणाविधि .... सागार अनशनका विधि, इसमें अनशन किसने, किसको, कत्र ।
करवाना सो विधि है.... .... .... .... ... ११० संस्कारसमाप्ति अनंतर विज्ञापन .... .... .... .... ५०२
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५१४
जिनका नाम है या नही
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(३२) शात्रिंश स्तंभ-जैनमतकी प्राचीनता और वेदके पागे और
अर्थों में गडबड हई है, तिसकी सिद्धि .... .... ५०३-५२४ जनमत वेदव्यासजीसें प्रथम विद्यमान था, ऐसा वेदव्यासके प्रमाण
सेंही सिद्ध किया है.... .... .... .... .... ५११ महाभारतके प्रमाणसे जैनमतकी प्राचीनता .... .... मत्स्यपुराणके लेखसे जैनमतकी प्राचीनता .... वेदसंहितादिकोंमें जैनका नाम है वा नही इत्यादि वर्णन.... .... ५१५ भावयज्ञका स्वरूप .... वेदोंमें नेमि और अरिष्टनेमि शब्द आता है सो जैनके तीर्थकर है,
इत्यादि वर्णन .... .... .... .... .... ५१९ तैत्तरीय आरण्यकमें प्रकटपणे अहंन्की स्तुति करी है तिसका वर्णन ५२१ जैनी लोक कितनेक वैदिक वचनोंका अनादर करते हैं, जिसका __मनुस्मृतिद्वारा कारण ..... ...... " योगजीवानंद सरस्वति स्वामिका पत्रकी नकल, जिसमें जैनमत___ को सर्वोत्तम सिद्ध किया है .... .... .... ... ५२६ (आत्मारामजीकी स्तुतिका) पूर्वोक्त महाशयका बनाया मालाबंधोक ५२८ जैनमतमें प्राचीन व्याकरण. तर्कशास्त्र नहीं है, ऐसी आशंकामा समाधान..... .....
"" .... ... ..... . .... ५२९
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