Book Title: Tarksangraha
Author(s): Santoshanand Shastri, Shrutvarshashreeji, Paramvarshashreeji
Publisher: Umra S M P Jain Sangh

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Page 6
________________ RamSMETIMESSXRESTINACKSXCLOTSXRELADICATEXCENTENCamera Opomocoon c संशोधन किया। वस्तुतः इस व्याख्याकी प्रेरणा, अनुमोदना तथा लेखनमें जो भी श्रम है वो उनका ही है, मेरा योगदान तो न के बराबर है। उनकी इस सद्रुचि, धैर्य ओर औदार्य के प्रति में अपनी हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करता हुं। उनकी स्वाध्याय वृत्तिको अनेकशः नमन। श्री उमरा जैनसंघ के ट्रस्टी के प्रति अपना अनेकशः हार्दिक आभार व्यकत करता हुं। उनके बिना यह ग्रंथ प्रकाशित नहीं हो पाता। अंत में स्वाध्याय-रत सभी जैन साधु-साध्वीजी भगवन्तो को हृदय से नमन करता हुं, जिनकी कृपा-वर्षा का अनुभव हमेशा होता रहेता है। स्याद्वाद की उस महान अविरत धारा को कोटिशः श्रद्धापूर्वक नमन। जो अत्यंत दुर्लभ है, और जिसको समझने से ग्रन्थि-भेद निश्चित है ऐसी अनेकान्तवाद की करुणामयी, समन्वयक द्रष्टि को अनेकशः प्रणाम। प्रकृत गुजराती व्याख्या का परिशीलन मेरे द्वारा किया गया है फीर भी कोई त्रुटि हो तो परिमार्जनार्थ अवश्य सूचित करें। omo Storico Costa ORSOLASI OBICE 2015129evage YOGYAvauvagesvang Valveg Van Avagyagokage दिनांक 30-3-2016 अर्पण नानपुरा, सूरत. पं. संतोष आनंद शास्त्री M.A. (Philosophy), NET (U.G.C.) Vedant - Acharya DESEDXSETDASICORNSETDRASICORNSETDRASIESTERSITTISING

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