Book Title: Swapna Pradip Shakun Saroddhar
Author(s): Vardhamansuri, Manikyasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 16
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ अहंम् ॥ तपोमृतिपूज्याचार्यदेव श्रीविजय कग्सरिभ्यो नमः श्रीरुद्रपल्लीमगच्छीयाचार्य श्रीवर्धमान सूरिविरचितः || श्रीस्वप्रपदीपः (स्वात्मा व बोध जस्वप्नाधिकारः) ॥ ॥ अथ दैवतस्वप्नविचाररूप. प्रथम उद्योतः ॥ परमात्मावबोधजम् । परात्मानं नमस्कृत्य पूर्व शास्त्रानुरोधेन किश्चित्स्वप्नफलं ब्रुवे ॥१॥ स्वप्नचतुविधः प्रोक्तो देवः स्वानुभवप्रजः । धातुप्रकोपजश्चैव चिन्तोद्भूतश्चतुर्थकः ॥२॥ graat aaraart frष्फलौ द्वौ दिवानिशम् । आयः सदा द्वितीयस्तु निशि सौख्यस्थितस्य च ॥३॥ देवयक्षादयो विप्रा गावो राजा च लिङ्गिनः । पितरो देवमूर्तिश्व वाक्चेष्टेपां च दैवतम् ॥४॥ सुखस्थस्य महास्वप्नः पूर्वकर्मानुसारतः । यो भाविकः स्वप्नः स ज्ञेयः स्वानुभावजः ॥५॥ वातपित्तमल श्लेष्म - मूत्रमालिन्यरोगजः दुःशय्यादिभवः स्वप्नः स ज्ञेयो दोषजोऽफलः ॥ ६॥ | For Private and Personal Use Only

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