Book Title: Swapna Pradip Shakun Saroddhar
Author(s): Vardhamansuri, Manikyasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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१६
आख्येयं नैव कस्यापि मलं मूत्रं समुत्सृजेत् । स्नानं दानं जपं होमं विशेषेण समाचरेत् ॥१३॥ उपवासं तद्दिने तु कृत्वा स्वप्नार्थवेदिनः । प्रणम्य तन्मुखात् श्रव्यं स्वप्नशास्त्रं समस्तकम् || १४॥ एतेनैव विधानेन दुःस्वप्नः प्रलयं व्रजेत् । शुभः स्वप्नोद्वितीयस्यां रजन्यां जायते ध्रुवम् ॥ १५ ॥
इति रुद्रपल्लीयगच्छे आचार्यश्री वर्धमानसूरिकृते स्वप्नप्रदीपे स्वात्मावबोधजस्वप्नाधिकारे शुभाशुभस्वप्नविचारे पंचमोद्योत समाप्तः ॥ ५ ॥
॥ इति श्रीस्वप्नप्रदीपः समाप्तः ॥
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