Book Title: Swapna Pradip Shakun Saroddhar
Author(s): Vardhamansuri, Manikyasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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यद्यग्रगामिनी याति दुर्गा प्रवासिना सह । अग्रे लाभं समाख्याति महान्तं खगसंयुता ॥१४॥ आगत्यर्थप्रार्थिता दक्षिणाङ्गे वामे वाङ्गे नीडकंसा विशन्ती। यानावृत्तिः स्यादथो पुत्रहेतोः पृष्टे दुर्गाग्रे खगः पुत्रदायी ॥१५॥ दुर्गाग्रे पृष्टतः पक्षी कन्याजन्म तदा वदेत् । वामस्वरा दक्षिणगा सखगा रोगशान्तये ॥ १६ ॥ निःस्वनस्थानकादुच्चं चटन्ती रोगवृद्धये । नीचगा रोगहन्त्री स्या-द्वामगा जीर्णरोगिणः ॥१७॥ वामा दक्षिणगा तारा विताग तद्विपर्यये ।। राजकार्य गता तारा खगेन सहिता शुभा ॥१८॥ वामगा दक्षिणारावा राज्यार्थे शकुनिने सा । विशन्ती कोष्टकं वाट-के राजग्रहकारिणी ॥१६॥ सखगा सा खगं त्यक्त्वा यात्यन्यत्र पदाप्तये । नार्थलाभः खगोऽन्यत्र याति चेदरिभीतये ॥२० ।। तौ द्वावप्यन्यान्यदिशं गतौ राज्यविरोधको । रिपूच्छेदविनष्टार्थे शुभा दीसा भयादिके ॥२१॥
॥ त्रिभिर्विशेषकं ।। तारा यान्ति लामदासा सभक्ष्या काष्टाद्यास्या हानिदा वामगा च । लाभं दद्यानाजयेऽग्रे खगश्चेत् पृष्टे देवी तारगा जैत्रदायी ।२२।
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