Book Title: Suyagadanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 11
________________ श्री सूयगडांग सूत्र श्रुतस्कंध २ तत्थ देसे देसे तहिं तहिं बहवे पउम-वर-पोंडरीया बुड्या, अणुपुव्युट्ठिया ऊसिया रुइला वण्णमंता गंधमंता रसमंता फासमंता पासाईया दरिसणिया अभिरूवा पडिरूवा। तीसे णं पुक्खरिणीए बहु-मज्झ-देस-भाए एगे महं पउम-वर-पोंडरीए बुइए, अणुपुबुट्ठिए ऊसिए रुइले वण्णमंते गंधमंते रसमंते फासमंते पासाईए ज़ाव पडिरूवे। सव्वावंति च णं तीसे पुक्खरिणीए तत्थ तत्थ देसे देसे तहिं तहिं बहवे पउम-वरपोंडरिया बुइया अणु-पुव्युट्ठिया ऊसिया रुइला जाव पडिरूवा । सव्वावंति च णं तीसे णं पुक्खरिणीए बहु-मज्झ-देस-भाए एगं महं पउम-वरपोंडरीए बुइए अणुपुव्युट्ठिए जाव पडिरूवे॥१॥ कठिन शब्दार्थ - आउसं - आयुष्मन् !, पोंडरीए - पुण्डरीक, णाम - नामक, अज्झयणे - अध्ययन, अयमढे - यह अर्थ, पुक्खरिणी- पुष्करिणी, बहुउदगा - बहुत जल वाली, बहुसेया - बहुत पंक वाली, बहुपुक्खला - बहुत कमलों से युक्त, पउमवर पोंडरीया - उत्तमोत्तम श्रेष्ठ श्वेत कमल, अणुपुबुट्ठिया - अनुक्रम से उपस्थित, ऊसिया - ऊपर उठे हुए, पासाईया - प्रसन्न करने वाले, दरिसणिजा - दर्शनीय, अभिरूवा - अभिरूप-कमनीय, पडिरूवा - प्रतिरूप-रमणीय बहुमज्झदेसभाए - ठीक मध्यदेश भाग में । भावार्थ - श्री सुधर्मा स्वामी अपने शिष्य जम्बू स्वामी से कहते हैं कि - हे आयुष्मन् जम्बू ! जैसा मैंने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के मुखारविन्द से सुना है वैसा ही मैं तुम्हें कहता हूँ। ____ जैसे कि एक पुष्करिणी (कमलों वाली बावडी) है उसमें बहुत जल तथा कीचड़ और बहुत से कमल है । वह चित्त को प्रसन्न करने वाली दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप है। उसमें इधरउधर बहुत से सुन्दर कमल खिले हुए हैं, वे जल से ऊपर उठे हुए, दीप्ति से युक्त, सुन्दर रंग वाले, श्रेष्ठ गंध वाले, मधुर रस वाले, कोमल स्पर्शवाले, मनोहर, दर्शनीय और सुन्दर हैं । उस पुष्करिणी के ठीक मध्य भाग में, एक बहुत बड़ा, उत्तम सफेद कमल है, वह जल से ऊपर उठा हुआ, कान्ति से युक्त, रूप-गंध-रस और स्पर्श में उत्तम, मनोहर, दर्शनीय और सुन्दर है । उस पुष्करिणी में वह बड़ा सफेद कमल, इधर-उधर उगे हुए, उपर्युक्त गुणों से युक्त बहुत-से कमलों के बीचोबीच है । विवेचन - इस सूत्र में शास्त्रकार ने संसार का मोहक स्वरूप सरलता से समझाने के लिये और उसके आकर्षण से ऊपर उठ कर साधक को मोक्ष के अभिमुख करने के लिये पुष्करिणी और पुण्डरीक के रूपक का चित्ताकर्षक वर्णन किया है। पुण्डरीक के समान संसार के विषय भोग रूपी कीचड़ और कर्म रूपी जल से ऊपर उठकर संयम रूप सफेद कमल को ग्रहण करे और मोक्ष प्राप्ति के लिये संसार की मोहमाया से ऊपर उठकर साधक श्रेष्ठ पुण्डरीक कमल के समान सम्यग्-दर्शन आदि रूप मोक्ष मार्ग को अपनावे । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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