Book Title: Sumainahchariyam
Author(s): Somprabhacharya, Ramniklal M Shah, Nagin J Shah
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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३११
सुमइनाह-चरियं
तत्थ निवो सिरिचूलो नरिंद-चूलग्ग-लग्ग-पयमूलो । जण-अणूकूलो करिदंत-मुसल-वियलिय-जलहि-कूलो।।२७१५।। तस्स बहु-वन्नणिज्जो जिणदत्तो नाम अत्थि वर-सेही । जिण-समण-चलण-कमलो जो भसल-विलासमुव्वहइ ।।२७१६।। तस्स वरुण त्ति घरिणी वर-सीलाभरण-भूसिय-सरीरा । ताण सुया विउलमई मइजिय-सुयदेवि-मइपसरा ||२७१७।। जिणदत्तस्स कयावि हु विहवो दिव्वाणुभावओ तुट्टो । तो रन्ना तस्स पर धणमित्तो ठाविओ सेही ||२७१८|| जस्स पुरो वेसमणं समणं व अकिंचणं जणो भणइ । दहूण जस्स एवं तणं व मयणं पयंपेइ ॥२७११।। अह कित्तियम्मि काले गयम्मि पत्तो कयाइ हेमंतो । अग्यविय-तिल्ल-कुंकुम-कामिणिथण-जलण-पावरणो ||२७२०।। अइ-सिसिर-पवण-कंपंत-गत्त पेवखेविण भवणि समत्त सत्त । वियसंत-कुंद-"कलियामिसेण जो हसइ गरुय-विम्हयवसेण।।२७२१|| हिम-पीडिय पंथिय जहिं असेस, भुयमंडल-पीडिय-हियय-देस । निय-कंत निच्चु मणि निवसमाण, पडिहासहि नं परिरंभमाण ॥२७२२।। जहिं तरुणिहिं घण-घुसिणंगराओ, निम्मविय सीय-संगम-विधाओ। मणि मज्झिय मंतु पियाणुराओ, न निग्गओ बाहिरि निव्ववाओ।।२७२३।। संतावकरु वि जहिं जणह जलणु, हिम-पीड-हरो त्ति पमोय-जणणु । जं कहवि अणिहु वि होइ इहु, सियवाओ जिणिंदिहिं तेण दिहु ।।२७२४।।
तम्मि हेमंते धणमित्तेण [सह] समागओ नगर-बाहिं जिणदत्तो । दिहं हिम-पवण-सीयल-सलिल-निब्भरं सरोवरं । भणियं धणमित्तेणजो इह सरोवरे आकंठ-बुड्डो रयणिं वसेइ तस्साहं दीणार-लक्खं देमि । ततो धणलुद-बुद्धिणा भणियं जिणदत्तेण-अहं वसिस्सं । जओ
अगणिय-सरीरपीडा अणविक्खिय-सयल-लोय-वयणेज्जा ।
लच्छी-लव-लुद्ध-मणा मणुया न कुणंति किमकज्जं ? ||२७२५|| तओ निसाए तहेव ठिओ सरोवरे जिणदत्तो । पच्चूसे गंतूण भणइ धणमित्तं-देसु मे दीणार-लक्खं । ठिओ हं सरोवरे निसाए | धणमित्तेण
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