Book Title: Sumainahchariyam
Author(s): Somprabhacharya, Ramniklal M Shah, Nagin J Shah
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 491
________________ सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं पुव्वदेसे कन्नसुवन्नए नयरे धणदेवरस इब्भस्स लच्छिकंताए पुत्तो । कयं रिद्धिदेवो त्ति ते नामं । सावग-कुलुप्पत्तीए बालगस्स चेव जाया धम्मपरिणई । 8EE 1 एत्यंतरे इयरो वि नरगाओ उव्वहिऊण समुप्पन्नो एत्थेव नयरे वाणियग-सुओ, कयं से नामं खलुगो त्ति । जाया तुम्हाण पीई, कुलग्गओ त्ति गारवेसि तुममेयं । एसो वि तुह पीईए देइ किंचि समणाईणं । अन्नया गया तुब्भे ववहारपडियाए कामरूवं । विदत्तं तत्थ दविणजायं । तं भूयं दहूण विणडं खलुगस्स चित्तं चिंतियमणेणवावाएमि रिद्धिदेवं, तओ केवलो चेव गिहिस्सामि दव्वं ति । तहा संकिलिड - चित्तेण चिंताए चैव कया बहवे वहोवाया । अन्नया निप्पिडंता कामरूवाओ आरूढा डुंगरं, दिट्ठा तत्थ महंती टंकछिन्न-दुत्तडी, खलुगेण चिंतियं - इओ पाडइस्सामि गत्ताए रिद्धिदेवं । तप्पाडणत्थं गत्तं पलोयंतो भमणीए निवडिओ खलुगो, मओमहा-रुद्दज्झाणेण उववन्नो तमप्पभाए पुढवीए | तुमं पि तन्निमित्तं गहिओ संवेगेण परिचत्ता विसया, विणिओजियं दविणजायं, पव्वइओ निय-थामे, अहाऊयमणुपालिऊण मओ समाणो उववन्नो अच्चुए । आउक्खएण तओ देवलोगाओ चविऊण तुमं मयंकसेणो, खलुगो वि उव्वहिऊण नरगाओ जाओ अमरसेणी । एवं एयरस एवंविहा लोह-सन्ना पओसरस कारणं, तुझं पि अमरसेणोवरि भत्तीए एवंविहो कुसलब्भासोति । एवं सोऊण मए संविग्ग-मणेण केवली पुट्ठो । भयवं ! कहेसु एवं ववत्थिए मज्झ किं जुत्तं ? ||३१९३ || केवलिणा वागरियं- अप्पहियं धम्ममेव सेवेसु । भणियं मए - मुणीसर ! रन्नो सेवा न किं जुत्ता ? ||३११४|| केवलिणा संलत्तं- पज्जत्तं नरवइस्स सेवाए । जेणेस संकिलिस्सइ अहियं सेविज्जमाणो वि ||३१९५ || तुह वहहेउं आरोग्गसिद्धि-विज्जो अणेण पविओ सो वि हु विसिह - धम्माणुवत्तगो तावसो जाओ ||३१९६ || मिलिही तुज्झ पभाए स तावसो तो गुरू मए पुट्ठो । कत्थ गमिस्सइ राया ? भणइ गुरु- सत्तम महीए || ३१७७ || For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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