Book Title: Sumainahchariyam
Author(s): Somprabhacharya, Ramniklal M Shah, Nagin J Shah
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 493
________________ ४६८ तहाहि सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं [८. नमस्कार - विषये पुलिन्द्र - मिथुन - कथा] अत्थि मही- महिला - केलि - पुक्खरे पुक्खरद्ध-भरहद्धे । रिद्धि-समिद्धो सिद्धावडु त्ति गामो जय - पसिद्धी || ३२१०|| तत्थागओ निरंकुस कसाय-दावानलेण डज्झतं । मेो व्व निव्ववंतो भुवण-वणं वयण धाराहिं ॥३२११ || देस - कुल - जाइरूवी संघयणी धिई-जुओ अणासंसी । अविकत्थणी अमाई थिर-परिवाडी - गहिय वक्को ॥३२१२|| जिय-परिसो जिय- निद्दो मज्झत्थो देस-काल- भावण्णू आसन्न -लद्ध-पइभो नाणाविह - देसभासन्नू ||३२१३|| पंचविहे आयारे जुत्तो सुत्तत्थ - तदुभय - विहिन्नू । आहरण- हेउ-उवणय-नय-निउणो गाहणा- कुसलो || ३२१४|| ससमय-परसमय-विऊ गंभीरो दित्तिमं सिवो सोमो | इय छत्तीस-गुण- जुओ सूरी सिरि-अजियदेवो ति || ३२१५।। तम्मि समयम्म पत्तो वासारत्तो विउत्त-मण- - दमणो । नव-केयग-कुडय-कयंबुब्बु - विरोलं व निउरंबो || ३२१६ || जम्मि पटु-पवण- - पिंडार - पिल्लियाओ भमंति गयण-वणे | पदाण- पहाणाओ महीसीओ व मेहमालाओ || ३२१७।। तडि छुरियं घण-माणाइं तेजयंतीइ पाउससिरीए । खज्जोया गयणयले फुरंति फारा फुलिंग व्व || ३२१८ || विलसंत-विज्जुलेहा हेमाहरणाइ मेहमालाए । गयणम्मि बलायाओ सहंति मुत्तावलीओ व्व ॥ ३२११ || आयहि (डि) य-सुरचावो धारा-सर-धोरणीहिं अणवरयं । पहणेइ विरहि - हरिणे वाहजुवाणो व्व जलवाही || ३२२०।। महि - महिला मेह- पिएण सरल- धारा-करेहिं छिप्पंती । उब्भिन्न- "नव-वणंकुर मिसेण रोमंचमुव्वहइ || ३२२१|| Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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