Book Title: Sumainahchariyam
Author(s): Somprabhacharya, Ramniklal M Shah, Nagin J Shah
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 513
________________ ४८८ सिरिसोमप्पहसूरि- विरइयं कईया ममम्मि निसिकय-काउस्सग्गे थिरम्मि थंभे व्व । पुर -परिसरे करेस्संति कंध- कंडूयणं वसहा ? || ३४६२ || सम- सुह- दुक्खो सम कणय पत्थरो सम सपक्ख पडिवक्खो । सम - तरुणि-तणुक्केरी सम- मोक्ख-भवो कया होहं ?||३४६३ ॥ गुण- पगरिसमारोढुं पसम सुहाराम - अमय- वुडि - समं । इय सिवपुर-गमण - रहे मणोरहे माणसे कुजा ||३४६४ || एवं अहोरत विहिं कुणंतो पलित्त-गेहं व भवं मुणंतो । लढूण सुद्धिं खविऊण दुक्खं गिही वि पावेइ कमेण मोक्खं || ३४६५।। एवं गुरूवएस कुणमाणो रायसिंह - नरनाहो । अप्पsिहय-प्पयावो चिरकालं पालए रज्जं ||३४६६ || पंचपरमेहि-मंताणुभावओ दुज्जया वि नरवइणो । लीलाए तस्स आणं वहंति सेसं व सीसेण ||३४६७ || कुसुमेहिं वणं व सरं व पंकएहिं नहं व रिक्खेहिं । भुवणं जिणभुवणेहिं विभूसियं कारए एसो || ३४६८|| पाविय-वय- परिणामो कयाइ एसो गओ गिलाणत्तं । मरणावसरं मुणिऊण अप्पणी रायसिंह - निवो || ३४६९ || रयणवई - अंगरुहुं पयावसीहं निवेसए रज्जे । परलोय - मग्ग- आराहणत्थमह वाहरेइ गुरु || ३४७०|| नमिऊण भणइ एवं- भयवं ! समओचियं ममाइससु । तत्तो वागरइ गुरू पज्जंताराहणं एयं ||३४७१|| आलोयसु अईयारे वयाइं उच्चरसु खमसु जीवेसु । वोसिरसु भावियप्पा अट्ठारस-पावठाणाई || ३४७२ || चउसरणं दुक्कड गरिहणं च सुकडाणुमोयणं कुणसु । सुह- भावणं असणं पंचनमोक्कार-सरणं च || ३४७३ || नाणम्मि दंसणम्मि य चरणम्मि तवम्मि तह य विरियम्मि | पंचविहे आयारे अइयारालोयणं कुणसु || ३४७४ || काल- विणयाइ- अद्वप्पयार-आयार - विरहियं नाणं । जं किं पि मए पढियं मिच्छा मे दुक्कडं तस्स ||३४७७ ।। For Private & Personal Use Only Jain Education International - www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540