Book Title: Sumainahchariyam
Author(s): Somprabhacharya, Ramniklal M Shah, Nagin J Shah
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं जलद्दाइ सिसिरोवयारा । पुणो चलणेसु लग्गिऊण भणियं निउणियाएसामिणि ! कहेह को एत्थ परमत्थो ? । निब्बंधे कए कहियमणाए जहासुयं मए अज्ज समुद्दे तरंतो को वि सप्पुरिसो लद्धी । देवयाए कहिओ त्ति पारो मह बंधुणा महंतो तस्स उवयारो । भोयण-मंडवं गयाए अ मए मयणब्भहिय- रुवाइ - गुणी पच्चक्खीकओ नयणेहिं । तं अप्पणी अब्भहिय-गुणं पेच्छमाणीए मणम्मि जाया मे चिंता किमेस मं पडिवज्जिस्सइ न व ? त्ति । तमेयं मे विसाय-कारणं । निउणियाए भणियं - सामिणि ! मुंच विसायं जओ
जइ गिरिसुयं गिरीसो नेच्छइ सिरिवच्छलंछणो लच्छिं । मयरद्धओ रई तो तुमं पि नायरइ सो सुहओ ||३००३||
किं च भोयण - मंडवे तुह समीवडियाए मयण-परवसत्तणं तरस तुमं पेच्छमाणस्स सक्खा वेअलक्खित्तं । एत्थंतरे आगंतूण चउरियाहिहाणाए चेडीए भणियं - सामिणि ! जुवराओ आणवेइ- 'अज्जेव संझाए पाणिग्गहण - लग्गं, ता संपयं कीरंतु सरीर-सक्कार मंगलाई । विज्जुलेहा तहेव काउमाढत्ता । लग्ग समए समागए महाविभूईए परिणीया गुणंधरेण । दिन्नं वाउवेगेण तीए गुणंधरस्स य सुवन्न - रयणालंकारवत्था य वित्थिण्ण-वत्थुजायं । ठिओ तत्थेव कयवइ (कइवय ) - दिणाई | अन्नया गुणधरेण वृत्तो वाउवेगो - तामलित्तीए नयरीए ममं पराणेहि । तओ तेण तक्खणा विउव्वियं विउल-मणि-दिप्पमाणं महप्पमाणं विमाणं । आरोविओ गुणधरो निउणिया- चउरियाहिं चेडीहिं समं विज्जुलेहा, सुवन्न - रयणाइयं च आणिऊण तामलित्तीए कुसुमागरुज्जाणे मुक्काई सव्वाइं । तओ वाउवेगो विओग - विगलंतंसुजलाविल-लोयणो गुणंधरविसज्जिओ संतो पत्तो सठाणं । गुणधरो वि वाउवेग-गुणावज्जियहियओ तव्विरहे सुन्नं व अप्पाणं मन्नए । अरइ-विणोयणत्थं वण- पेरंतेसु परिब्भमंतेण तेण दिडं पिट्ठलग्ग - सिर- पिट्ट - कुट्टण - पयट्ट - रूयमाणरमणि-चक्कं । अक्कंद - सद्द - रउद्द- पुरिस-परंपरा-परिगयं मयगं, तूरसद्द - सवणाओ जीवमाणं निज्जइत्ति नाऊण पुट्ठो गुणंधरेण पासवत्ती पुरिसो भद्द ! को एवं कयंतातिही संवुत्तो ? केण वा निमित्तेण ? |
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तेणावि नाय - वुत्तंतेण वृत्तं सोम ! सुण, अत्थि एत्थ रिद्धिवित्थरावहत्थिय - वेसमणी समग्ग-मग्गण-मणोरहाइरित्त-वित्तप्पयाण
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