Book Title: Sumainahchariyam
Author(s): Somprabhacharya, Ramniklal M Shah, Nagin J Shah
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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सुमइनाह-चरियं
एवं जुत्तीहिं पयंपियम्मि रन्ना पयंपए कुमरो । जइ एवं ताय ! तओ कुणसु तुमं जं मणोभिमयं ॥३०७८।। तो हरिस-निब्भरेणं रखा कुमरो निवेसिओ रज्जे । विहिणा सयं पवना दिक्खा केवलि-चलण-मूले ||३०७१।। सम्मत्तमूल-सावयधम्म गहिउँ गुणधर-नरिंदो । नमिऊण य केवलिणं संपत्तो नयरि-मज्झम्मि ||३०८०।। तो केवली वि अन्नत्थ विहरिओ सूररायरिसि-सहिओ । अह काउं तिव्व-तवं सूररिसी सग्गमणुपत्तो ||३०८१।। अह विच्छाईकय-रायमंडलो फुरिय-दसदिसि-पयावो । परिपालइ हयदोसो सूरो व्व गुणधरो रज्जं ||३०८२|| नव-नव-जिणभवणाई कारवइ समुद्धरेइ जिल्लाइं । सव्वत्थ-वित्थरेणं रहजत्ताओ पयट्टेइ ||३०८३।। पूएइ साहु-वग्गं पव्व-दिणे पोसहं कुणइ सम्मं । जिणधम्मम्मि परं पिहुजणं पयट्टावए बहुयं ॥३०८४।। एवं जिणिंद-धम्मं कुणमाणेणं महापयत्तेणं ।। रना गुणधरेणं केसिं न कओ चमक्कारो ? ||३०८५।। अह चिरकालं परिपालिऊण रज्जं गुणंधर-नरिंदो । ससिलेहा-अंगरुहं जसोहरं ठाविउं रज्जे ||३०८६।। कल्लाणकोस-केवलि-पासे पडिवज्जिऊण पव्वज्जं । जाओ गीयत्थ-मुणी सम्मं गुरुणा अणुब्लाओ ||३०८७|| जिणकप्पं पडिवन्नो विहरंतो बहुविहेसु देसेसु । पत्तो कुसग्ग-गामे काउस्सग्गे ठिओ बाहिं ॥३०८८।। एत्तो य जोणगेणं परिब्भमंतेण दमगवित्तीए । दिहो सो अज्ज वि जीवइ ति रोसं वहतेणं ।।३०८१।। अह अत्थमिओ भाणू वियंभिओ भसल-सामलच्छाओ । गयणंगणे तमोहो तह मोहो जोणगस्स मणे ||३०१०।। लउडेण हओ सो जोणगेण तो भग्गमुत्तिमंगं सो । अह वेयणा सरि संजाया जीवियंतकरी ||३०११।।
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