Book Title: Sumainahchariyam
Author(s): Somprabhacharya, Ramniklal M Shah, Nagin J Shah
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 484
________________ सुमइनाह-चरियं अहाऊयकालो तओ चविऊण वीरसेण-जीओ जाओ तुमं राया, सारसिगा-जीवो वि किराएसर-- धूया गुंजावली, कुरव-जीवो वि जयमंगलो हत्थी । ता एवं गुंजावलीए नेहाणुबंधो । इयरस्स वि मायाए ओघसन्ना एत्थ कारणं । जं कालसेण-जम्मे हढेण हरिऊण संकरि घरणिं । नरवर ! तुमए खित्तो विओग-दुक्खम्मि कालमुहो ।।३१६०।। तं दोसु भवेसु तए वि पावियं पिययमा-विरह-दुक्खं । जं कीरइ सुहमसुहं व तरस लब्भइ फलं नूणं ||३१६१|| जं च तुमं पुव्वं वंचिऊण कुरवेण भक्खियं दव्वं । तेणेस वाहणं तुह जाओ जयमंगलो हत्थी ||३१६२|| इय सोउं संविग्गो राया बडुगो य जंपियं रब्ला । भयवं ! किमित्थ जुत्तं ? अह जंपइ चंदणायरिओ ||३१६३।। कहिऊण पुव्व-वइयरमेसिं कुसलप्पवत्तणं कुणसु । एवं ति जंपिउणं गुरु-भणियमणुहियं रन्ना ||३१६४।। एत्थंतरम्मि जायं जाईसरणं इमस्स बडुगस्स । सो संविग्गो नमिउं निय-वुत्तंतं कहइ गुरुणो ||३१६५।। गुरुणा वुत्तं-जाणामि अहमिणं, आगओ अओ चेव । तुज्झ पडिबोहणत्थं तं सोउं विम्हिओ राया ||३१६६।। पडिबुद्धो बडुगो वि हु जंपइ- भयवं ! किमित्थ मह जुत्तं ? | भणइ गुरू- माया-निग्गहेण जिण-धम्म-पडिवत्ती ।।३१६७।। एवं ति अब्भुवगयं इमिणा तो सावगत्तणं गहियं । तं पालिऊण विहिणा मरिउं सोहम्ममणुपत्तो ||३१६८।। तत्तो चविओ लहिउं सुनरत्तं नियडि-निग्गह-पहाणो । काऊण वयं कम्मक्खएण मोक्खं गओ एसो ||३१६१।। इय कोह-माण-माया-रहिओ वि ह जइ न वज्जए लोहं । लोहं व जले जीवो तो बुड्डुइ दुत्तरम्मि भवे ||३१७०।। दन्नय-फारफणेणं विवेय-जीविय-विणास-दक्खेणं । लोह-भुयगेण डक्का न मुणंति हियाहियं जीवा ||३१७१।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540