Book Title: Sumainahchariyam
Author(s): Somprabhacharya, Ramniklal M Shah, Nagin J Shah
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं तियस-कय-कणय-कमले उवविठ्ठो धम्मदेसणं कुणइ । भाणु व्व भविय-कमलाण मोह-निदं वि निद्दलइ ||३१११|| विहरइ भुवणम्मि चिरं कमेण सेले सिकरणमणुपत्तो । चत्तारि भवोवग्गहकराणि कम्माणि निम्महइ ॥३१२०।। तुद्देसु कम्मलेवेसु सो मुणी सयल-लोय-सिरि-भूयं । निव्वाण-पयं पावइ तुंबं व जलस्स उवरितलं ||३१२१|| अह चंडसेण-कुमरो अविणयसीलो पलोयए जं जं । रमणीय-वयर-मणिमय-वत्थ-सुवन्नाइ अन्ने सिं ||३१२२।। तं तं सव्वं गिण्हइ तो पिउणा वारिओ रिउ व्व तओ । कुवियमणो खग्गेणं सीसं छिंदेइ जणयस्स ||३१२३।। रज्जे सयं निविहो पाविहो कुनयवारण-पहाणे । हणइ पहाणे तत्तो सो तेहिं उवेक्खिओ संतो ||३१२४।। गहिऊण वइरिएहिं कुंभीपागेण पाविओ निहणं । रुद्दज्झाणोवगओ सत्तम-नरयम्मि संपत्तो ||३१२५।। कोवं परिहरमाणो वि माणवो माण-वज्जणे सज्जो । जइ होज्ज तो लभिज्जा इह-परलोए य कल्लाणं ।।३१२६|| माणत्थदो अंतोनिविह-संकु व्व कुणइ पणिवायं । न हु जणणी-जणयाणं न गुरुण न देवयाणं पि ||३१२७|| माणहो उडमुहो गयणम्मि गणंतओ व्व रिक्खाइं । अनिरिक्खिय-सुह-मग्गो भवावडे पडइ किं चोज्जं ? ||३१२८|| पुत्तं पि य विणयपरं परं व गणिऊण जणणि-जणया वि । चिरगोवियत्थ-वित्थार-भायणं कहवि न कुणंति ||३१२१।। गुरुणो विज्जं सिप्पाइं सिप्पिणो नदृसूरिणो नहें । गीयाई गायणा वि हु न माणिणं सिक्खवंति नरं ||३१३०।। रायाऽमच्चाईणं पि सेवओ माणवज्जिओ चेव । लहइ मणवंछियत्थं पुरिसो इयरो पुण अणत्थं ॥३१३१।। माणी उव्वेवकरो न पावए कामिणीण कामसुहं । इत्थीण कामसत्थेसु संकमणं मद्दवं जम्हा ||३१३२।।
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