Book Title: Sumainahchariyam
Author(s): Somprabhacharya, Ramniklal M Shah, Nagin J Shah
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 457
________________ ४३२ सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं निसन्नी महल्ल - पल्लंके । विविह विणोएहिं गमिऊण खणं भणिओ वाउवेगेण - भद्द ! अत्थि किंचि वत्तव्वं ? गुणधरेण वुत्तं- सम्मं भणसु निव्वियग्धं । - विज्जाहरेण वुत्तं- वेयड्डो नाम पव्वओ अत्थि । नवरयण - कूड - सिहरग्ग-भग्ग-रवि-रह तुरंग-पहो ॥२९८२|| तत्थऽत्थि रयणसालं नयरं नय-रम्म खयर रमणीयं । रमणीयण - रयणाहरण-किरण निम्मविय- सुर- चावं ||२१८३|| साहिय- समग्ग-विज्जो विज्जाहर-मउलि-मिलिय-पयकमलो । धम्मत्थ-काम-निरओ जलणसिंहो तत्थ खयरिंदो || २१८४|| तस्सत्थि चंदकंता कंता सयलावरोह- कयसोहा । सोहग्ग - रयणखाणी ताण सुओ वाउवेगो हं ||२१८५ || किंच मह लहुय - बहिणी लहूकयाऽमर- पुरंधि-रूवमया । मयणस्स हत्थि भल्लि व्व विज्जुलेह त्ति नामेण || २१८६ ।। संपत्त - जोव्वणा सा पत्थिज्जइ पउर- तरुण खयरेहिं । ताएण चिंतियं तो जस्स न दिज्जइ इमा बाला || २१८७|| सो वि करिस्सइ कोवं ति रोहिणी देवया तओ पुट्ठा । साहेसु देवि ! होही को एत्थ वरो मह सुयाए ? ||२९८८ || तो देवयाए कहियं सुवेल-पव्वय-समीव- देसम्मि । "पेच्छसि जं नररयणं समुद्द - सलिलोवरि तरंतं || २१८९ || होही गुणधरो नाम सो वरो नूण विज्जुलेहाए । तो ताएणाणत्तो इहागओ हं सपरिवारो || २९९०|| गहिऊण विज्जुलेहं तो एत्थ विऊव्विऊण पासायं । चितेण मए खलु चउद्दिसं पेसिया पुरिसा ||२९९१ || जलनिहि - गवेसणत्थं तेहिं भमंतेहिं तो तुमं दिहो । सलिलोवरि तरंतो समप्पिओ मह इहाणेउं ||२११२|| ता मज्झ पत्थणाए करग्गहं कुणसु विज्जुलेहाए । जेणऽम्ह जणयलोओ लहेइ मण - 1 - निव्वुई सव्वो ॥२९९३|| Jain Education International For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org

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