Book Title: Sumainahchariyam
Author(s): Somprabhacharya, Ramniklal M Shah, Nagin J Shah
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 432
________________ ४०७ सुमइनाह-चरियं तइलोक्क-वसीकरणो समत्त मणि चिंतियत्थ-संजणणो । . जिण-पन्नत्तो धम्मो मंतो तंतो व न हु अलो ||२७७१।। जेहिं विहिओ न धम्मो पुव्वं ते एत्थ दुत्थिया जीवा । किं पसरइ दालिदं चिंतारयणे वि संपत्ते ? ||२७७२|| गोवद्धणेण भणियं- पुव्व-भवे मह सूयाए किं विहियं । जेणेसा एवंविह-दोहग्ग-कलंकिया जाया ? ||२७७३।। भणइ गुरु-जमिमीए रोहिणि-जम्मे कया गुरु-अवन्ना । तीए फलेण लहिउं असंख-जम्मेसु दुक्खाइं ॥२७७४।। उप्पन्ना तव धूया इय सोउं जाय-जाइसरणाए । नमिऊण धनियाए अवितहमेयं ति संलत्तं ॥२७७५।। गुरुणा वुत्तंइहलोईए वि कज्जे देवं गुरु [च] नमंति जणा । किं पुण परलोय-पहे धम्मायरियं पईव-समं ||२७७६।। नाणस्स होइ भागी थिरयरओ दंसणे चरित्ते य । धन्ना आवकहाए गुरुकुलवासं न मुंचंति ॥२७७७।। छहहम-दसम-दुवालसेहिं मासद्ध-मासखमणेहिं । अकुणंतो गुरु-वयणं अणंत-संसारिओ होइ ||२७७८।। इय सोउं पुव्वकयाईयारमालोईऊण गुरुपुरओ । गहिउं गिहल्थधम्मं च धनिया कुणइ तिव्व-तवं ॥२७७१।। वत्थं भत्तं पाणं पत्तं सेज्जं च जं जमणुकूलं । तं तं गुरूण वियरेइ फासुयं एसणिज्जं च ||२७८०।। अह उल्लसंत-सद्धा संवेगपरा "पवजिउं दिक्खं । गुरुणो पवत्तिणीए य कुणइ आणं सबहुमाणं ॥२७८१।। किं बहुणा ? ऊसासाइ वजिउं अवर-सव्व-किच्चेसु । ते पुच्छिऊण सम्मं पयट्टए धनिया धन्ना ||२७८२।। इय गुरुजण-आणाए विहिय-वया वीस-वरिस-लक्खाइं । मरिऊण धनिया सा सोहम्म-सुरालयं पत्ता ||२७८३।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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