Book Title: Sumainahchariyam
Author(s): Somprabhacharya, Ramniklal M Shah, Nagin J Shah
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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सुमइनाह-चरियं
जं अप्पणा करणं पावेणं पाविउं अणत्थमिणं । अप्पाणं निद्दोसं कुणइ तमारोवइ ममं पि ||२८४७|| ता मह अलं इमीए कहाए पावाए पाव-जणणीए' । इय चिंतिऊण चित्ते कुबेरदत्तो तहेव ठिओ ||२८४८।। रना पुणो वि पुठो जाव पयंपइ न किं पि स महप्पा । तो तीए पलत्तमिणं-किमुत्तरं कुणइ कयपावो ? ||२८४१।। एसो देवस्स पुरो कवडेण ठिओ अवलंबिउं मोणं । ता देव ! निम्वियारं इमं अकज्जं कयं इमिणा ||२८५०।। तो रन्ना वागरियं- तलवर ! एयरस निग्गहं कुणसु । जेण विणा अवराहं पावेण विडंबिया बाला ||२८५१।। तो तलवरेण वुत्तं- इमस्स गुणरयण-रोहणगिरिस्स । न वहति वहत्थं पत्थिविंद ! हत्था मह विहत्था ||२८५२।। तो नरवरेण वुत्तं-किं कारणमित्थ तलवर ! कहेसु । तो तलवरेण सव्वं कहियं रनो रयणि-वित्तं ।।२८५३|| भणियं पुणो वि तेणं एत्थत्थे देव ! पच्चयं काही ।
मयग-मुहे चिट्ठतं अज्ज वि तं नासिया सयलं ||२८५४|| तओ रन्ना पेसिओ पच्चइय-पुरिसो, दिहं च तं मयग-मुहे नासग्गं । सिहं तेण जहादिहं रनो । कुण रला निव्वासिया सनयराओ देविला । कुबेरदत्तो उण 'अहो ! परदोस-पयंपण-परम्मुहो एस'त्ति संतुह-हियएण संपूईओ रन्ना । पत्तो सगेहं परिभाविउं पवत्तो
धिद्धी । भवस्सरुवं जम्मि महामोह-परवसा संता | पीयमइर व्व जीवा कज्जमकज्जं न मुणंति ||२८५५।। गिरि-सरि-पय-पूरं पिव समूलमुम्मूलयंति धम्म-वणं । उम्मेिं ठ-मत्त-करिणो व्व उप्पहेणं पयति ।१२८५६।। पेक्खंति समुक्खय-चक्खुणो व्व सग्गापवग्ग-मग्गं नो । विसवेग-विहुरिया विव हिओवएसं पि न सुणंति ||२८५७।। अगणिय-जण-वयणेज्जा तं किं पि समायरंति किं बहुणा ? | इह-परलोए य हवंति भायणं जेण दुक्खाण ||२८५८।।
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