Book Title: Sumainahchariyam
Author(s): Somprabhacharya, Ramniklal M Shah, Nagin J Shah
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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૪ર૭
सुमइनाह-चरियं पेसिया पीऊस-वुहि व्व दिही साहिलासं । ठिओ सो तत्थ वाजेण । भणिओऽणेण जोणगो- मित्त !
नूणमिमीए निरग्गल-निसग्ग-सोहग्ग-भग्ग-गव्वाओ ।
लज्जाइ सुर-वहूओ अदिस्सभावं पवन्नाओ ||२१५२।।
जोणगेण वुत्तं - तुमं महिला-लंपडो संवुत्तो ता एवं मन्ने सि । पेसियमिमीए कुमरस्स कविंजलाए हत्थे तंबोलं । गहियं गुणधरेण । किमेत्थ जुत्तं ति जाव चिंतइ ताव उम्मूलिऊण खंभं वियरिओ मत्त हत्थी। कयमणेण असमंजसं । आउलीहूओ जणो । समागओ सहयार-वीहिमुद्देसं भउब्भंत-लोयणो पलाणो कन्नगा-परियणो | न पलाणा रायकन्ना । धाविओ तं पइ हत्थी । अद्धगहिया इमा । तेण धाहावियं परियणेणअत्थि को वि महासत्तो सप्पुरिस-चूडामणी चउद्दसी-जाओ जो अम्ह सामिणिं कयंत-विब्भमाओ इमाओ रक्खेइ ? |
तो धाविऊण हत्थी पच्छिम-भागम्मि रायपुत्तेण । मुट्ठीइ तहा पहओ तयभिमुहं सो जहा चलिओ ।।२१५३।। तं वंचिऊण तत्तो नीया अन्नत्थ तेण रायसुया । नित्थारिया कयंताणुगारि-करिसंभमाहिं तो ||२१५४|| मुंचइ न मुंचमाणो वि रायकन्ना गुणधर-कुमारं । आणंद-सुंदरेहिं पुणरुत्तं नियइ नयणेहिं ॥२१५५।। तत्तो अन्नत्थ-गए गयम्मि मिलिओ अ परियणो तीए । तेणावि सरुवं किंचि लक्खियं ताण दोण्हं पि ।।२९५६।। तम्मि समयम्मि पढियं केणावि हु मागहेण जह एसो ।
जयइ गुणंधर-कुमरो सूर-नरिंदरस वर-पुत्तो ||२१५७।। एत्थंतरे तरुण-पउरेहिं पारद्धं परुप्पर-विइब्न-सिंगय-जलप्पहारमुक्क-सिक्कार-मणहरं हरिणमय-घुसिण-घणसार-घणचंदणुम्मिस्ससलिले हिं छंटणं । गओ दिसोदिसं सव्व-लोगो । गुणधरो वि पत्तो नियावासं । अन्न-दियहे पेसिओ गुणंधरेण रायकन्ना-पउत्ति-निमित्तं जोणगो रायसुयावासस्स पेरंते परिसक्वंतो दिहो कविंजलाए । तओ सो एस तस्स सुहय-से हरस्स सहयरो त्ति बहुमाणपुव्वं हक्कारिऊण नीओ रायकला-समीवं । दिन्नं सगोरवमासणं । दिहा तेण रायकन्ना । केरिसी ?
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