________________ [ 15 कर किसी न्यायाचार्य पण्डित से तलस्पर्शी अभ्यास किया। तर्क के सिद्धान्तों में वे उत्तरोत्तर पारङ्गत होते गए। वहाँ से विहार करके गुजरात के अहमदाबाद नगर में पधारे। वहाँ श्रीसंघ ने विजयी बन कर पानेवाले इस दिग्गज-विद्वान् मुनिराज का पूर्ण स्वागत किया। उस समय अहमदाबाद में महोबतखान नामक सूबा राज्य-कार्य चला रहा था। उसने पूज्य उपाध्यायजी की विद्वत्ता के बारे में सुन कर आपको आमन्त्रित किया। सूबे की प्रार्थना पर आप वहाँ पधारे और 18 अवधान प्रयोग कर दिखाए। सूबा उनकी स्मृतिशक्ति पर मुग्ध हो गया। उनका सम्मान किया / जैनशासन का जय-जयकार हुआ। वि० सं० 1718 में श्रीसंघ ने तत्कालीन तपागच्छीय श्रमणसंघ के अग्रणी श्रीदेवसूरिजी से प्रार्थना की कि 'यशोविजयजी महाराज बहुश्रुत विद्वान् हैं और उपाध्याय पद के योग्य हैं। अतः इन्हें यह पद प्रदान करना चाहिए।' इस प्रार्थना को स्वीकृत करके सं० 1718 में श्रीयशोविजयजी गणी को उपाध्याय पद से विभूषित किया गया। उपाध्याय जी के अपने छह शिष्य थे, ऐसी लिखित सूचना प्राप्त होती है। .' उपाध्याय जी ने स्वयं लिखा हैं कि 'न्याय के ग्रन्थों की रचना . करने से मुझे 'न्यायाचार्य' का विरुद विद्वानों ने प्रदान किया है / उपाध्यायजी ने अनेक स्थानों पर विचरण किया था किन्तु प्रमुखरूप से वे गुजरात और राजस्थान में रहे होंगे ऐसा ज्ञात होता है / 'सुजसवेली' के आधार पर उनका अन्तिम चातुर्मास बड़ोदा शहर के पास डभोई (दर्भावती) गाँव में हुआ और वहीं वे स्वर्गवासी हुए। इस स्वर्गवास का वर्ष सुजसवेलि के कथनानुसार 1743 था। तदनन्तर उनका स्मारक डभोई में उनके अग्निसंस्कार के स्थान पर