Book Title: Sthananga Sutra Part 01 Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak SanghPage 11
________________ . [10] १९८ विषय . . पृष्ठ | विषय . पृष्ठ त्रिवर्ण विमान १७१ अनुज्ञा, उपसम्पदा, विजहना तीन प्रज्ञप्तियाँ १७२ वचन और मन के तीन-तीन रूप १९१ तृतीय स्थान : द्वितीय उद्देशक अल्प वृष्टि और महा वृष्टि १९१ तीन प्रकार के लोक १७२ मनुष्य लोक में देव के आगमन और देवलोक की परिषदाएँ १७३ अनागमन के कारण . १९३-१९४ तीन याम, तीन वय की इच्छा एवं पश्चात्ताप १९६-१९७ . बोधि और बुद्ध १७४ | देवों का च्यवन-ज्ञान और उद्वेग १९८ प्रव्रज्या भेद १७५ | देवों के विमान संज्ञोपयुक्त और नो संज्ञोपयुक्त निर्ग्रन्थ १७६ | तीन प्रकार के नैरयिक शैक्ष-भूमि और स्थविर-भूमि १७६-७७ | दुर्गतियाँ, सुगतियाँ मनोवृत्ति अनुरूप मानव १७८-७९ ग्रहणीय प्रासुक जल और ऊनोदरी तप २००-२०२ गर्हित और प्रशस्त तीन स्थान १८० | तीन कर्म भूमियाँ . २०५ जीवों की त्रिविधता १८०-८१ दर्शन, रुचि, प्रयोग, व्यवसाय भेद २०५ लोक-स्थिति १८१ पुद्गल और नरक २०७ तीन दिशाएँ १८१ | मिथ्यात्व के विविध रूप २०८ त्रस और स्थावर जीव १८२ | धर्म और उपक्रम . समय, प्रदेश और परमाणु १८३ कथा और विनिश्चय प्राणियों को किससे भय है ? १८३ | धर्म-श्रवण से सिद्धि दुःख कृत कर्म का फल है १८४-८५ / तृतीय स्थान : चतुर्थ उद्देशक तृतीय स्थान : तृतीय उद्देशक साधु के लिये उपाश्रय और संस्तारक २१२ आलोचना न करने और करने के कारण १८६-८७ | काल, समय, पुद्गल-परावर्तन-भेद । पुरुष-भेद १८८/वचन-भेद २१३ तीन प्रकार के वस्त्र और पात्र १८९ प्रज्ञापना, सम्यक् और उपघात २१४ संयमी वस्त्र क्यों रखें ? १८९ आराधना, संक्लेश और प्रायश्चित्त आदि २१५ आत्म-रक्षक दत्तियाँ १८९ उद्गम उत्पादना आदि के दोष २१६-१९ साम्भोगिक विसाम्भोगिक कब? क्यों ? . १९० जम्बूद्वीप में क्षेत्र पर्वत और नदियाँ आदि २२०-२२१ २०९ २०९ २१२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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