Book Title: Shrutdeep Part 01
Author(s): 
Publisher: Shubhabhilasha Trust

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Page 11
________________ श्रुतदीप-१ आकृति की रचना की है। देवनागरी लिपि के मोड से इस प्रत का लेखनकाल संभवतः १८ वी सदी होने का अनुमान है। अंत में लेखक ने यह प्रत किस को पढने के लिये लिखी थी यह लिखा है। लेकिन वह नाम हरताल से मिटा दिया गया है। मध्यकाल में प्रतों की मालिकी भाव को लेकर या सांप्रदायिक कारण वशात् ऐसा कृत्य किया जाता था। __ हमें प्रत की Xerox प्रत ही उपलब्ध हुई है। इसकी लंबाई-चौडाई २७x१५ प्रमाण है। प्रत्येक पत्रमें१२ पंक्तियां है एवं प्रत्येक पंक्ति में ३८ अक्षर है। इस कृति के संपादन समय पाठनिर्धारण के लिये व्याकरण और छंद के नियमों को ध्यान में लिया है। क्योंकि इस कृति की यह एकमात्र प्रत हमारे पास है और दूसरी संदर्भ सामग्री भी उपयुक्त नहीं है। लेखक के द्वारा भ्रष्ट अक्षर को [ ] चतुष्कोन कोष्ट मे दिया है। जैसे प्रथम श्लोक में स] तथा पाँचवे श्लोक में म]। संशयास्पद पाठ को अधोरेखांकित किया है उदा. चयत त्रिदिवं(श्लो.२)। अशुद्ध पाठ की जगह शुद्ध पाठ वृत्त कोष्टक में रखा है, उदा, ()) श्लो.५।। परिशिष्ट में श्लोकार्ध का अनुक्रम, विशेष नाम, पारिभाषिक शब्द और चोवीस तीर्थंकर के कल्याण तिथियों का कोष्ठक प्रस्तुत है। इस संपादन में हमे पूज्य मुनिश्री वैराग्यरति विजयजी गणिवर का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ है, हम उनके प्रति कृतज्ञ है। पाठकों से निवेदन है कि संपादन में रह गई अशुद्धियों का प्रमार्जन करें। -संपादक

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