Book Title: Shripal Charitram Author(s): Kirtiyashsuri Publisher: Sanmarg Prakashan View full book textPage 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीपालचरितम् ॥४॥ वारणा २ चोयणा ३ पडिचोयनामें अधिकारी और सूत्रार्थका अध्ययन करानेमें उद्यमवंत स्वाध्यायमें लगा है मनभाषाटीकाजिन्होंका ऐसे ॥२७॥ | सहितम्. सवासु कम्मभूमिसु, विहरते गुणगणे हि संजुत्ते । गुत्ते मुत्ते झायह, मुणिराए निट्ठिय कसाए ॥२८॥ ___ अर्थ-अहो भव्यो तुम सर्व कर्मभूमिमें पांच ५ भरत ५ ऐरवत पांच महाविदेह इन १५ क्षेत्रोंमें विचरते मुनि राजोंको ध्यावो कैसे मुनिराज गुणोंके समूहोंसे युक्त ३ गुप्तिसहित सर्वसंगरहित दूर किया है कषाय जिन्होंने 3 ऐसे ॥२८॥ सबन्नु पणीयागम, पयडिय तत्तत्थ सदहण रूवं । दंसण रयण पईवं, निच्चं धारेह मणभवणे ॥ २९॥1* | अर्थ-अहो भव्यो सर्वज्ञोंने कहे सिद्धान्तोंमें प्रगट किया तत्वरूप अर्थ उन्होंका जो श्रद्धान वह है स्वरूप जिसका ऐसा सम्यक्त्वरूप रत्नदीपक निरंतर मनमंदिरमें धारो ॥२९॥ जीवाजीवाइ पयस्थ, सत्थ तत्ताववोह रूवं च । नाणं सवगुणाणं, मूलं सिक्खेह विणएण ॥ ३०॥ । अर्थ-अहो भब्यो जीवाजीवादिक पदार्थोंका समूह उन्होंका जो तत्वावबोध तत्वज्ञान स्वरूप जिसका ऐसा ज्ञान | | विनय करके तुम सीखो कैसा है ज्ञान सर्व गुणोंका मूल कारण है ॥ ३०॥ ॥४ ॥ असुह किरियाण चाओ, सुहासु किरियासुजोय अप्पमाओ।तं चारित्तं उत्तम, गुणजुतं पालह निरुत्तं ३१ CAUSALSALMALS For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 334