Book Title: Shripal Charitram Author(s): Kirtiyashsuri Publisher: Sanmarg Prakashan View full book textPage 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ - नव पदोंमें प्रथम पदमें निरंतर अरहंतोंको तुम ध्यावो कैसे अरहंत अठारह दोषरहित और निर्मल जो ज्ञान वोही है स्वरूप जिन्होंका और प्रगट किया है तत्व जिन्होंने और इन्द्रोंने नमस्कार किया है जिन्होको ऐसे ॥ २४ ॥ पनरसभेय पसिद्धे, सिद्धे घणकम्मवंधणविमुक्के । सिद्धाणंत चउक्के, झायह तम्मयमणा सययं ॥ २५ ॥ अर्थ - अहो भन्यो तुम सिद्धमय है मन ऐसे जिन अजिनादि पन्द्रह भेदोंसे प्रसिद्ध ऐसे सिद्धोंको निरंतर ध्याओ कैसे हैं सिद्ध कर्मबंधनसे रहित और निष्पन्न हुआ है अनंत चतुष्क ज्ञान १ दर्शन २ सम्यक्त्व ३ अकर्ण वीर्य जिन्होंके ऐसे ॥ २५ ॥ पंचायारपवित्ते, विसुद्ध सिद्धंत देसणुजुत्ते । परउवयारिक्कपरे, निच्चं झाएह सूरिवरे ॥ २६ ॥ अर्थ - अहो भन्यो तुम निरंतर आचार्योंको ध्यावो कैसे आचार्य ज्ञानाचार १ दर्शनाचार २ चारित्राचार ३ तपाचार ४ वीर्याचार ५ ये पांच आचारसे पवित्र निर्मल और विशुद्ध सिद्धान्त जिनागमकी जो देशना उसमें उद्यमवंत और परोपकारही एक प्रधान है जिन्होंके उसमें तत्पर ऐसे ॥ २६ ॥ गणतत्तीसु निउत्ते, सुत्तत्थझाणंमि उज्जुत्ते । सझाए लीणमणे, सम्मं झाएह उवझाए ॥ २७ ॥ अर्थ - अहो भव्यो तुम सम्यक जैसे होवे वैसा उपाध्यायोंकों ध्यावो कैसे उपाध्याय गच्छकी त्रप्तिः सारणा १ For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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