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( २१ ) सत्कार किया । वास्तवमें ऐसे तपस्वी तो जो काम हाथमें ले लेते हैं उसमें यशस्वी ही होते है। तत्पश्चात् बुद्धिशाली गांगलिऋषिने राजासे कहा कि-'हे राजन् ! आपके आगमनसे हम कृतार्थ हुए, इसलिये हमारे कुलको अलंकारके समान, जगतके नेत्रोंको वश करने के लिये साक्षात् कामणरूप, हमारे जीवनके प्रत्यक्ष प्राणरूप, कल्पवृक्षके फूलों की मालाके समान कमल-माला नामक मेरी कन्या आप ही के योग्य है, आप उसका पाणिग्रहण करके हमको अंगीकार करो." ___ "मन भाती बात ही वैद्य ने बताई" ऐसा ही अवसर हुआ। मनमें तो राजाको स्वीकार ही थी, तो भी ऋषिने जब बहुत ही आग्रह किया तब राजाने यह बात स्वीकार की, सत्पुरुषों की यही रीति है। _ पश्चात् ऋषिने अपनी नवयौवन-सम्पन्न कन्याका राजाके साथ विवाह किया । शुभ कार्यमें विलम्ब कैसा ? जिसके शरीर पर बल्कल वस्त्रके सिवाय कोई अलंकार नहीं था तो भी राजा मृगध्वज ऋषिकन्या कमलमालाको देख कर बहुत प्रसन्न हुआ। क्यों न हो? राजहंसकी प्रीति कमलमाला (कमलोंकी पंक्ति) पर होना ही चाहिये।
अंतमें ऋषिने कर मोचनके समय जमाई ( राजा) को पुत्र संतति-दायक एक मंत्र दिया। ऋषियोंके पास और कौनसी बस्तु देने लायक है ? उस समय आनन्द पायी हुई तापसिनियोंके