Book Title: Shil Prakash
Author(s): Padmasagar Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 4
________________ Shn Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shn Kailassagarsuri Gyanmandir शील ॥ श्रीजिनाय नमः॥ प्रकाशः ॥ अथ श्रीशीलप्रकाशः पारन्यते ॥ (कर्ता श्रीपद्मसागरगणी) छपावी प्रसिह करनार पंडित श्रावक हीरालाल हंसराज (जामनगखाळा) तन्याउन्यार्चितांहिः प्रथमजिनपतिनऽमुन्निनेत्र–श्चके येन त्रिलोकी निजव. चनसुधापानतः शांतचित्ता ॥ श्रीशांतिः शांतिगेहं शमयतु पुरितं युष्मदीयं समस्तं । यो मेने प्राग्नवे खं तृणमिव सधनं देहमेकांगिरदाः ॥ १ ॥ श्रीनेमिस्तीर्थभर्ता नवतु नवभृतां कल्मषव्रातहर्ता । यस्तत्याज स्वरागां कृतसकृपमना निःस्पृहः कांतकांतां ।। पार्श्वे वः पार्श्वनाथोऽप्यविक्लकमलां प्रापयत्वस्तविघ्नः । प्राप्तो यस्य प्रनावात्सुरपतिपदवों दग्धदेहोऽपि सर्पः ॥२॥ श्रीमदीरश्विनत्तु प्रकटतममहामोहपाशं दृढं नः । पादांगु For Private And Personal use only

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