Book Title: Shikshaprad Kahaniya
Author(s): Kuldeepkumar
Publisher: Amar Granth Publications

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Page 15
________________ शिक्षाप्रद कहानिया ___ घूमते-घूमते रात्रि का समय हो गया। संयोगवश उस दिन शरदपूर्णिमा थी। चन्द्रमा अपनी 16 कलाओं से शोभायमान होकर शीतल चाँदनी बिखेर रहा था। वातावरण अत्यंत ही रमणीय था। यह सब देखकर वह बहुत ही हर्षोलषित हुआ और आनन्द मनाने लगा, लेकिन संयोगवश उसी समय उसकी दृष्टि चन्द्रमा पर पड़ गई और वह उदास हो गया तथा कहने लगा- हे चन्द्र देवता! काश तेरे अंदर यह काला दाग न होता तो तू कितना अच्छा होता? इसी प्रकार भ्रमण करते हुए उसने प्रकृति की असंख्य अमूल्य निधियों को देखा, लेकिन अपनी प्रकृतिवशात् उसने उन सभी में कोई न कोई कमी निकाली और सभी को कहता गया कि काश तेरे अंदर यह न होता तो कितना अच्छा होता। यह सब देखकर प्रकृति की वे सभी अमूल्य निधियाँ सूर्य, चंद्रमा, नदी, समुद्र, पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, वर्षा, हवा, धूप-छाँव आदि सभी एकत्रित हुए और एक स्वर में कहने लग- अरे! मनुष्य। अरे ओ प्रकृति के सुन्दरतम प्राणी जरा हमारी भी बात सुनता जा तूने अपनी तो खुब सुना दी और सभी एक स्वर में बोले- कितना अच्छा होता किकाश तेरे अंदर ये दूसरों में कमी देखने की आदत न होती तो तू प्रकृति की सर्वोत्कृष्ट रचना होता। मित्रों! यह कहानी किसी और की नहीं है, अपितु यह कहानी हम सब की है। और उक्त कहानी हमें यह शिक्षा देती है कि- हमें गुणों की ओर ध्यान देना चाहिए। अच्छाइयों को देखना चाहिए। इस सृष्टि में सर्वगुण सम्पन्न तो शायद ही कोई वस्तु हो। अतः हम सबको गुणग्राही बनना चाहिए। और स्वयं को सुधारना चाहिए। कहा भी जाता है कि अरे! सधारक जगत् के चिन्ता मत कर यार। तेरा मन ही जगत् है, पहले इसे सुधार॥

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