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शतपदी भाषांतर.
कारे लख्युं छे के संज्ञि एटले श्रावकोने जिनप्रतिमानुं पहेलुं प्रतिष्ठापन करतां परवादी विघ्न मकरो एवा विचारथी वादि साधु त्यां जाय. तेमज कोई श्रावक जिनप्रतिमानुं पहेलं प्रतिष्ठापन करे, त्यां साधुओने आवेला जोइ विचारे के ज्यारे आ महात्माओ पूजा जोवा सारुं आवे छे, तो मारे पण ए कल्याणकारी छे माटे मारे नित्य पूजा करवी, एम ते श्रावकनी बुद्धि थाय. अने जो त्यां साधुओ नहि जाय तो श्रावकना मनने एम थाय के कोई महात्मा तो आवता नथी माटे शुं करवा पूजा करूं. इत्यादि.
माटे इहां पहलां प्रतिष्ठापन करे एम लख्युं छे तेनो अर्थ आगला संबंध ऊपरथी पहेली पूजा करे एम थाय छे.
कदाच कोई कहेशे के इहां प्रतिष्ठापन शब्द प्रेरकरूपथी सिद्ध एल छे माटे तेनो अर्थ प्रतिष्टा कराववी एवो थशे तो तेने अमे कहीए छीये के जो एम थाय तोपण साधुए प्रतिष्टा करवी एम नथी आवतं.
अवांतर प्रश्नः - चूर्णिमां कां छे के साधुओ पूजा देखवा आवे छे पण कंइ प्रतिष्ठा तो देखवा नथी आवता ?
उत्तरः- सिद्धांतमां ने पहेली पूजा तेज प्रतिष्टा कहेवाय छे. अंजनशलाका के आह्वानादिक क्रियाओ कई प्रतिष्ठा नथीं कही.
वळी प्रभावती राणीना वृत्तांतमां पण वीरप्रभुनी मूर्त्तिनी प्रतिष्ठा विद्युन्माळी देव तथा प्रभावती शिवाय कोइए करी नथी. तेमज समुद्राचार्यकृत प्रतिष्ठाकल्पमां श्रावकप्रतिष्टाज देखाय छे. तथा पंचाशकमां प्रतिष्ठा द्रव्यस्तवमां गणी छे. अने यतिने द्रव्यस्तव करवो आवश्यक नियुक्ति तथा महानिशीथमां सर्वथा निषिद्ध कर्यो छे.
माटे श्रावको पहेलां पूजे अने पछी चतुर्विध संघ वांदे ए