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(९०) शतपदी भाषांतर.
विचार ७३ मो. मनः-साधुने बीजीवार भोजन कर, कल्पे के नहि ?
उत्तरः-सामान्यपणे एकवारज भोजन करवं कल्पे पण इहाँ दिगंबरोनी माफक अवधारण घटी शके नहि.
कारण के ओपनियुक्तिमा लख्यु छे के प्रमाणद्वारमा बेवार गोचरीए जवानुं कर्तुं त्यां एटलुं वधु जाणवू के आचार्य, बाळ, ने ग्लानना अर्थे बे करतां वधुवार पण जइ शकाय छे अने का. लद्वारमा बे काळे जवान कछु छ सां एटलं वधु जाणवु के ग्लान अने तपस्वीना पारणाअर्थे अतिप्रभातमा अथवा भिक्षावेळा टळी जतां पण घणीवार जवाय.
वळी ओघभाष्यमां लख्यु छ के ग्रीष्मकाळगां तपस्वी के तरसेलो अथवा भूखेलो पुरुष भूखतरस सही नहि शकतां पेहेली पंक्तिए गोचरी जवानी रजा ल्ये.
विचार ७४ मो. प्रश्नः-खरडेलेज हाथे भिक्षा लेवी जोइये के केम ?
उत्तरः-कल्पादिक ग्रंथो प्रमाणे कंई एवो नियम देखातो नथी के खरडेलेज हाथे भिक्षा लेवी. कारण के त्यां नीचे मुजब आठ भांगा पाही लख्यु छे के जे जे भांगे सावशेष द्रव्य होय ते ते भांगे लेवु कल्पे.
भांगानी विगत आ प्रमाणे छे. १ संसृष्ट हाथ, संसृष्ट पात्र, सावशेष द्रव्य. २ संसृष्ट हाथ, असंसृष्ट पात्र, सावशेष द्रव्य.