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शतपदी भाषांतर. "
सातमी गाथानी व्याख्यामां सामान्यचूर्णिमां एम लख्युं छे जे " जो पगे विहार थइ शके तेम होय तो मागसरनी पडवेनाज नीकलवं. अने विशेषचूर्णिमां वळी ते साथ चार मास पूरा थतां " एटलुं वधु लख्युं छे.
बळी पहेला उद्देशानी सामान्य तथा विशेष बन्ने चूर्णिमां लख्युं छे जे ज्यां चोमासुं कर्यु होय त्यां व्याघात न होय तो चोमासुं पूरुं थतां मामसरनी पडवेनाज नीकलबुं अने बाहेर हीडीने पारणं करवुं. अने व्याघात होय तो चोमासुं पूरुं थया अगाऊ पण, अथवा वीत्या केडे पण नीकली शकाय.
ए रीते ए छ ग्रंथनी हुंडीओ तथा गया विचारमां चोमासा बाबत लखेली आठ हुंडीओमां चोमासी पडिकमणुं पूनमनुंज कहेल छे. माटे कल्पचूर्णिना त्रीजा उद्देशामां लखेल वातनी व्याख्या पण बीजी हुंडीओना अनुसारेज करवी घंटे के कारण के सर्वे आगमग्रंथोनी परस्पर विसंवाद नहि आवे तेम व्याख्या करवी जोइये, त्यारे तेज ग्रंथनी ऊपर लखेल छ हुंडी आथी विरुद्ध व्याया केम करी शकाय ते माटे "कार्तिकी पूनमेज नीकलकुं" एवाक्यनो अर्थ एम करो के "कार्तिकी पूनमना अनंतरज नीकलवं."
वळी तमे जो "कार्तिकी पूनमेज नीकलं" ए वचननी युक्ति लगावी चौदशनुं पडिकमणुं करवुं ठेरावशो तो वीजा वळी एम ठेरावशे के पर्युषणाकल्पनी नियुक्तियां कां छे जे " कारणयोगे साधु वगर पडिकमे पण विहार करे" तेथी पूनमनो पण वगर पडिकमेज विहार करवो अने बाहेर आवी पडिकमणुं कर. तेमने शी रीते उत्तर वालशो ?
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