Book Title: Shatpadi Bhashantar
Author(s): Mahendrasinhsuri
Publisher: Ravji Devraj Shravak

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Page 202
________________ शतपदी भाषांतर. बे मास पोसनी. पूनमे पूरा थाय छे. माटे ज्यां चोमासुं कर्यु होय त्यां माघविदि एकमथी वस्त्र ग्रहण करवा. . वळी त्यांज स्थळांतरे लख्युं छे के चंद्रमासनो दाखलो ते ए के श्रावण विदि १ थी श्रावण मुदि १५ सूधी एक मास थाय. . वळी एक हुंडीमां “दिवस, पोसह, तथा पक्ष व्यतिक्रम्यो" ए वाक्य ऊपर लख्युं छे के दिवस ते दिन, पोसह ते आठम चौदशनो उपवास करवो, अने पक्ष ते अर्धमास." ए हुंडी पण त. पाशवा लायक छे. हमणाना आचार्योए पण आगमना अभिप्राये पाखी पूनमनीज मानी छे. जुओ ठाणाप्रकरणनी वृत्तिमां कां छे के “काळिकाचार्य कारणे करीने चोथनी पजूसणा चलावी अने समस्तसंघे ते मान्य करी. तेना लीधे पाखी पण चौदशनी आचराइ. नहि तो आगममां तो पूनमनी छे." हवे कोइ कहेशे के जे वेलाए कालिकाचार्ये पांचमथी चोथनी पर्युषणा करी ते वेलाएज पूनमथी चौदशे पाखी थइ छे. तेने ए उत्तर छ के ए वात एम नथी. कारण के पर्युषणाकल्पमां कडं छ के “आर्य काळिकाचार्ये कारणिया चोथ चलावी, (तेथी) तेज बधा साधुओमां ख्याति पामी." एम पर्युषणा बाबतज इहां चर्चा छे. बाकी पांखीनी कंई पण वात नथी. वळी ठाणाप्रकरणना टीकाकारे पण एमज कयुं छे के “तेना लीधे पांखी चौदशनी आचराइ पण एम नथी कह्यु के “कालिकाचार्ये पांखी पण चौदशनी आणी." वळी लोकमां पण पक्षनुं अंत पूनमेज थाय छे. कारण के एक काव्यमां कयुं छे के "हे कांता, तुं पक्षना अंते खुल्ली अगासीपर सूइश मा. केमके नहि तो कदाच तारा मनोहर, गोळ,

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