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( १८०) शतपदी भाषांतर. - (२) कल्पचूर्णिमां पाने १४२ मध्ये कह्यु के के व्याघात न होय तो कार्तिक चोमासु पूरुं करीने मागशरनी पडवेना दिने विहार करवो अने व्याघात होय तो तो आगल के पाछल पण विहार करी शकाय. .. (३) निशीथचूर्णिमा कह्यं छे के उत्सर्गे एक क्षेत्रमा आषाढी पूनमे चोमासु थापी कात्तिकी पूनमे चोमासु पूरूं करी मागशरनी पडवेनो विहार करवो. अने अपवादे मागसर विदि दशम सूधी पण रही शकाय छे.
(४) वळी सांज लख्यु छे के कार्तिकी पूनमे चोमासु पूरुं करी मागशरनी पडवेना दहाडे विहार करवो एटले के चार मास पूरा थतां पगे विहार थइ शके तेम होय तो चोथी पडवे आवतां अवश्य विहार करवो.
(६) सांज त्रीजे स्थळे लख्यु छ जे वर्षाकाल योग्य क्षेत्रमा आषाढी पूनमे चोमासु पडिकमी पार्छ कात्तिकी पूनमे पण पडिकमीने पडवेना दहाडे बीजे क्षेत्रे जइ पारणुं करवू.
(६) त्यांज चोथे स्थळे लख्युं छे जे आषाढी पूनमे चोमासु पडिकमी योग्य क्षेत्रमा चोमासु रहे. अने कार्तिकी पूनमे चोमासु पडिकमी पडवेना बीजा स्थळे पारणुं करे.
(७) पांचमे स्थळे कयु छ जे वर्षाकाळ एक क्षेत्र रहेता का. तिक चोमासानी पडवेना दिने अवश्य विहार करवो..
(८) छठे स्थळे कह्यु छ जे वर्षाक्षेत्रमा चार मास निर्विघ्नपणे रही कार्तिक चोमासु पडिकमी मागशरनी पडवेना दिने विहार करवो. तेम न करे तो प्रायश्चित्त आवे. - एम पूनमना दिने चोमासु करवानी आठ हुंडीओ लखी छे तथा ए बाबतमां बीजी पण घणी हुंडीओ रहेल छे.