Book Title: Shatpadi Bhashantar
Author(s): Mahendrasinhsuri
Publisher: Ravji Devraj Shravak
View full book text
________________
शतपदी भाषांतर.
विचार ११४ मो.
( सर्व साधुओने वांदणां दइ शकाय . )
प्रश्नः - सर्व साधुओ भणी वांदणा कां देवरावो छो? (कारण के वांदणां तो आचार्यादिकनेज देवाय.
उत्तरः- सिद्धांतमां साधुने वांदवाना पण अक्षर देखाय छे. तेना दाखला.
( १८५ )
आवश्यकचूर्णिमां "कृतिकर्म (वंदन) कोने कर" ए प्रश्नना उत्तरमां " श्रमणने वांदवुं" एम कही तेनो विशेष खुलासा करतां लख्युं छे के मेधावी पुरुषे मेधावी एटले मर्यादाथी चालनार अने विज्ञानवंत, तथा सम्यक् रीते पापथी निवर्त्तेला, ज्ञानदर्शनचारित्रमां उजमाल, समितिगुप्ति साचवनार, अने असंयमने धिक्कारनार एवा श्रमण - साधुने वांदवुं. बाकी जे उक्तगुणोथी रहित देखाता निवश्रमणो जेवा के आजीविक तापस, परिव्राजक, तद्वर्णिक, तथा बोटिक ए वधा श्रमणशब्देज ओलखाय छे, छतां तेमने नहि वांदवा. तथा जे बळी जिनशासनमा रहेला पांच पासत्यादिक छे ते पण नहि वांदवा. ए रीते मेधावीए मेधावी श्र मण वांदवा. अने ते ऊपर जे चौभंगी थाय तेमां पण एज भांगो सफळ छे. शेष भांगामां फळनी भजना छे.
,
एवी रीते चूर्णिमां योग्यायोग्यनो विभाग पाडेल छे. पण एम विभाग नथी पाडेल के सामान्ययतिने वर्जीने आचार्यादिकनेज वांदणां देवां
44
वळी स्थळांतरे त्यांज लख्युं छे के “ प्राहूणा थइ आवेलाने वांदणां देवां तेनी विधि ए छे के जो ते संभोगी होय तो पोताना आचार्यने (फक्त) पूछीनेज वांदवुं. अने असंभोगी होय तो पोताना आचार्यने वांदी संदिसावीने पछी तेने वांदबुं." इहां पण
૨૪
Page Navigation
1 ... 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248