Book Title: Shatpadi Bhashantar
Author(s): Mahendrasinhsuri
Publisher: Ravji Devraj Shravak
View full book text
________________
__ . लघुशतपदी.
( २०३) वळी विवेकी श्रावको धर्मस्थानमां वेशी कंइ पण आहार नथी करता. अने सामायिक कर्या बाद सचित्तवस्तुवाळा स्था. नोमां पण नथी जता एवी अनादि व्यवस्था चालती आवी छे. माटे पोसहमा सामायिकवंत छतां आहार करवो मानशो तो साधुना अवग्रहमां रहीने पण पाणी पीतां तथा अप्रमार्जित घरमां जतां आवतां शो दोष गण शकाशे.
वळी विचारो के आवश्यकनियुक्तिमा जे वातोने पोसहना अतिचाररूप ठेरावी खुल्ली निषेधेल छे तेज वातो पोसहव्रतरूपे केम कही शकाशे ?
कदाच कहेशो के चूर्णिकरि पोतेज देशपोसह तथा सर्वपोसह एम बे प्रकारे पौषध कडं छे, माटे देशपौषध पण व्रतज थशे. तेने ए उत्तर छे के सिद्धांतनी शैली एवी छे के पहेलां बधे ठेकाणे जेटला भेद संभवी शके तेटला प्ररूपी तेमांथी उपयोगी भेदवडे वातनो निर्वाह करे छे. दाखला तरीके “ नमो आयारयाणं" ए पदनी व्याख्या करतां चारे निखेपा बतावी भावाचायेनेज नमाय छे. तेम इहां पण पौषधना संभवता भेद बतावीने सर्वपौषधनेज व्रत मानी तेना अतिचार चूर्णिकारे प्ररूप्या छे.
आ मतलबथी योगशास्त्रनी टीकामां पण एवीज व्याख्या करी छे के पौषधवत ते सर्वपोसह जाणवू.
कदाच कोइ कहेशे के जेम चोथा व्रतमा स्वदारसंतोषीने त्रण अतिचार अने परदारवर्नकने पांच अतिसार संभवे छे तेम इहां पण सर्वपोसहवाळाने पांचे अतिचार घटाववा अने देशपोसहवालाने चार अथवा कोइ पण नहि घटे एम घटाव, ए पण वात वाजवी नथी. कारण के जे जे व्रतमा जे जे अतिचार नथी संभवता ते चूर्णिकार तथा वृत्तिकार पोतेज निर्णय करी चूक्या ले.
Page Navigation
1 ... 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248