Book Title: Shatpadi Bhashantar
Author(s): Mahendrasinhsuri
Publisher: Ravji Devraj Shravak

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Page 232
________________ ( २१२ ) लघुशतपदी. माटे भावार्थ ए रहेल छे के पूर्वे अगीतार्थादिकने मसंग दोष टालवा सामान्यपणे सर्व प्रलंब लेतां दोषो तथा प्रायश्चित्त बतावी पछी यथावस्थित आचीर्णता तथा अनाचीर्णता प्ररूपी छे. कारण के त्यांज कहां छे के ए प्रायश्चित्त अगीतार्थ आचार्य के जे गच्छनी सारसंभाळ न करे तेने अथवा अगीतार्थ भिक्षु के जे विषयलोलुप होय तेने लागे छे. अने ए वात एमज मानवी घटे छे, नहि तो धर्मरुचि वगेरा मुनिओ कटुक तुंब शा माटे लेत ? कदाच कहेशो के तेमणे तो मासखमणना पारणे भोजनरूपे ते लीधुं छे, कंइ शाकरूपे नथी लीधुं; पण ते पण घंटे नहि केमके मूले लख्युं छे के छमास पर्यंत निराहार रहेवं, पण प्रलंब न लेवा. माटे जो ए निषेध सर्व साधु साधारण होत तो ते गीतार्थ पण ते नहि लेतां वीजा घरेथी बीजुं भोजन लेत. माटे अगीतार्थ आसरीनेज सर्व प्रलंबन निषेध छे बाकी गीतार्थने तो वगर कारणे पण आचीर्णप्रलंब लेतां दोष नथी. वळ पाकेली केलाफरी, खजूर तथा द्राक्षादिक पण अगीतार्थने लेवी निषेधी छे केमके ते प्रसंगदोषे छेवट बगीचामांथी पोतेज तोडवा जवा मांडे; पण गीतार्थने तथाविध पुरुषविशेष, देशविशेष, के ग्लान, बाळादि कारणे अथवा दुर्भिक्ष के मुशाफरीना कारणे विधिए लैतां दोष नथी. (वळी पांखीसूत्रनी वृहद्वृत्तिमां गुरुनी तेत्रीश आशातनाना अधिकारे शाक तथा आंबाना फळादिकनुं ग्रहण स्पष्ट रीते कहेल छे. ) माठे सचिव साधुने लेवो न कल्पे एवोज उपदेश देवो पण सर्व प्रलंबन निषेध छे एम न बोलवं.

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