Book Title: Shatpadi Bhashantar
Author(s): Mahendrasinhsuri
Publisher: Ravji Devraj Shravak

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Page 219
________________ ( १९९ ) लघुशतपदी. विचार २१ मो. स्थापनाचार्य बाबत ए तत्व छे के सिद्धांतमां स्थापनाचार्य तथा भावाचार्य बने प्रगटपणे कहेला छे. माटे जेवो योग मळे ते प्रमाणे गुरुनी सामग्रीमां सर्वे क्रियाओ करवी. (यां भावाचार्य ते ए के मनमां गुरुनो भाव आणवो.) वळी जो मनमां बेशाडेल गुरुभावरूप आचार्यने सर्वथा अस्वीकार करशो तो तमारा अभिप्राये पंचपरमेष्टिओनी पण सामे रहेंली पांच मूर्त्तिओ शिवाय नोकार गणवुं पण निरालंबन थइ पडशे. माटे जो भावथी अरिहंतादिकनी थापना कबूल राखीये तो ग्रामांरे के खलाखेतर वगेरा स्थळे पण कराती क्रिया सफळ थायछे. बळी साक्षाद्गुरु के स्थापनाचार्य आगल क्रिया करतां वच्चे अग्नि वगेराथी छेदणी थाय छे. पण भावस्थापनाचार्य सांखे क्रिया करता ते पण नथी थती. विचार २२ मो. ए बहु चिंतनीय वात छे के केटलाक सुविहितो पण नोकारनिर्युक्तिमा छ वार " होइ मंगलं " एवो उच्चार करी पाछा "हवइ मंगलं "ज लखता रहे छे. विचार २४ मो. कोइ कदाच एम कहे छे के श्रावकने रजोहरण तथा मुखव स्त्रिकारूप संपूर्ण लिंग न थाओ. पण एकली मोपती होय तो. शुं छे? तेणे जाणवुं घटे छे के रजोहरण विनानी एकली मोपतीथी

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