Book Title: Shatpadi Bhashantar
Author(s): Mahendrasinhsuri
Publisher: Ravji Devraj Shravak

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Page 220
________________ (२००) लघुशतपदी. तो कंइ पग के भूमि प्रमार्जी शकाय नहि. अने तेम न थतां संपूर्ण संयम रहे नहि. ए कारणेज अल्प उपधिवाळा जिनकल्पिने पण ऊपरनी काया प्रमार्जवा तथा मुख ढांकवा अर्थे मोपती अने नीचेनी काया प्रमार्जवा माटे रजोहरण राख कहेल छे. इहां कोइ कहेशे के दारुदंड एटले पादपोंछणुं एटले के हमणा जेने चळवळु कहे छे तेनावडे संपूर्ण संयम रही शकशे. तेने ए उत्तर छे के ए चळवळु तो थोडा वखतथीज अने थोडाक गच्छमांज मवयु छे. केमके मळधारियच्छ, ऊकेशमच्छ, संडेरगच्छ तथा खर• सर वगेरा घणा महोटा गच्छोमा चळवळु नथी मानता. अने तेओ कहे छे के "मोपती सहित चळवळो राखतां रजोहरणनी नकल थयाथी संपूर्ण साधुलिंगनी विडंबना थाय छे माटे तेम करवू श्रा. वकने अत्यंत अयुक्त छे" ए ऊपर तो केटलाक पोताने "चळवळाकंदकुद्दाल" एवं विरुद बोलावे छे. __वळी जे केटलाके चळवळु स्वीकारेल छे ते पण फक्त श्रावकोने माटेज स्वीकार्य छ, पण श्राविकाओने स्वीकार्य नथी; त्यारे शुं श्राविकाओने प्रमार्जना नथी करवी के ? कदाच श्राविकाओने पण चळवळ ठेरावशो तो छेदग्रंथोमां जे दोषो माटे साध्वीओने रजोहरणनी गोळ दांडी राखवी निषे. धी छे ते दोषो लागशे. वळी सं. १२९५ वर्षे प्रभु महेंद्रसिंहमूरिए शतपदी ग्रंथ कों तेथी ते काले जो चळवळु प्रवर्त्ततुं होत तो तेनी त्यां चर्चा लखवामां आवत, तथा ते समयना बीजा ग्रंथोमां पण तेनी चर्चा थात, पण ते तो क्या देखाती नथी. माटे. जणाय छे के चळवळु थोडा काळथीज चाल्युं छे.

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