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( ८८ ) शतपदी भाषांतर. प्रायश्चित्त लागे, एम निशीथभाष्यमां कडं छे..
(६) रजोहरणना दंडमां खीली के दसीओनो बंध पाडवो "नहि जोइये. कारण के कल्प तथा निशीथना भाष्यमां तेम करवा मनाई पाडेल छे.
(७) रजोहरणना ऊपर वेश, जोइये नाह; कारण के निशी. थचूर्णिमां कह्यु छे के जो ऊंदर, चोर, छोकरा, के दुश्मननु भय होय तो रजौहरणपर बेशवू पण ते शिवाय बेशq नाह. ... (८) रजोहरण जमणे पडखेज धरवू जोईये. कारण के नि शीथचूर्णिमां कधुं छे के बेठा होतां के सूता होतां जे साधु रजोहरण ओसीसे धरे अथवा डावी बाजुए आगल के पाछल राखे तेने प्रायश्चित्त लागे. माटे बेठा होतां के सूता होतां ऊं. दरादिकना भय शिवाय जमणी बाजुएज अधोमुख करीने रजोहरण राखq. ... (९) रजोहरणनी दसीओ बार आंगलनीज जोइये. अने निशीथना भाष्य तथा चूर्णिमां जे दंड चोवीश आंगलनो होय तो दसीओ आठ आंगळनी, दंड वीशनो होय तो दसीओ बारनी अने दंड छवीशनो होय तो दसीओ छ आंगळनी एम भजना बतावी छे ते अपवादपदनी अपेक्षाए अथवा यथाकृत एटले जेवा मळे तेवा रजोहरणनी अपेक्षाए लागे छे. कारण के त्यांज लख्युं छे के बीजापदे आपेला प्रमाणवाळु रजोहरण दुर्लभ होता हीन के अधिक जे, मळे तेवू पण धरी शकाय. तथा यथाकृतना अधिकारे लख्युं छे के यथाकृतनी दसीओनी भजना छे एटले के दंडना प्रमाणनी वधगट प्रमाणे दसीओनुं प्रमाण जाणवू.