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( १२४) शतपदी भाषांतर. ए घटना युक्तिरहित अने नवीकल्पित जेवी देखाय छे. कारण के पंचमंगळ कई जूदो श्रुतस्कंध नथी किंतु सर्वश्रुतस्कंधनो अभ्यंतरभूत रहेल छे, इरियावही पण प्रतिक्रमणाध्ययननो एक देश छे, शक्रस्तव ज्ञातादिकना अध्ययननो एक भाग छ, तथा अरिहंतचे. इयाणं वगेरा अने पुक्खरवरदीवढे वगेरा काउसग अध्ययनना अवयव छे. अने चोवीसत्थो ए एक अलग अध्ययन छे. आवी रीते सिद्धांतवादीओमां प्रसिद्ध वात छे, छतां उपधान चळावनाराओए नवकारना पांच अध्ययन अने ऊपर त्रण चूळिका, इरियावहीना आठ, शक्रस्तवना बत्रीश, चोवीसत्थाना पचीश, अर्हत्स्तवना त्रण अने श्रुतस्तवना पांच अध्ययन ठेरव्या छे. माटे ए बधुं कल्पितज लागे छे. कारण के एकने महाश्रुतस्कंध ठेराव्यो, बीजाने श्रुतस्कंध ठेराव्यो, अने वाकीनाने एमज रहेवा दीधा तेनुं शुं कारण छ ? वळी कया सिद्धांतमा एक एक पदनां अध्ययन कह्यां छे ते पण विचारवा लायक छे. तेमज सामायिक, वांदणा, पडिकमणुं वगेरा छ आवश्यकना उपधान नहि कहेतां जूटक उपधान कह्यां त्यां पण युक्ति नथी देखाती. - तथा उपधानना तप पेटे कहेवामां आवे छे जे पिस्ताळीश नोकारसी, अथवा चोवीस पोरसी, अथवा शोळ पुरिमढ, अथवा दश अवढ, अथवा आठ ब्यासणावडे उपवास लेखी शकाय ते पण आगमग्रंथमां क्यां पण कहेल नथी. - हवे ए बधुं महानिशीथमां कहेल छेपण ते ग्रंथ प्रमाण करी शकाय तेवो नथी कारण के तेना क एज तेज ग्रंथमां लख्युं छे के "इहां जे वधगट लखायुं होय तेनो दोष श्रुतधरोए (मने) नहि आपवो. (कारण के ) एनो जे पूर्वादर्श हतो तेमांज क्यांक श्लोक, क्यांक अर्धश्लोक, क्यांक पद के अक्षर, क्यांक पंक्तिओ,