Book Title: Shatpadi Bhashantar
Author(s): Mahendrasinhsuri
Publisher: Ravji Devraj Shravak

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Page 193
________________ शतपदी भाषांतर. ( १७३ ) के " चार स्थळे सामायिक करतां तो अवश्य सर्व करवुं. ए आवश्यक जो साधु पासे करवानुं होय तो" ए वाक्यथीज षडाव - श्यक आवे छे. जो फक्त सामायिकनीज विधि कहेवी होत तो ए वाक्य न लखत. वळी सामायिकनी प्रस्तावना तो शरुआतमांज " ते करवानी विधि आ प्रमाणे छे" ए वाक्यथी करेल छे. छतां कलम बीजीथी तेनी तेज प्रस्तावना बीजीवार कां करे मांटे कलम बीजीथी षडावश्यकनीज प्रस्तावना जणाय छे. aft जो इहां सामायिकनीज विधि होय तो कछु के "घरेथीज सामायिक लई साधु पासे जाय" इहां सामायिक लइ एम कहेतां तेनी विधि पूरी थइ चूकी, त्यारे ऊपरनी विधिशा माटे चलावी. कोइ कहेशे के ऊपरनी विधि गुरुनी भक्ति साचववा सारं कही छे; पण तेम पण नथी केमके कलम ५-६ मां चैत्य तथा पोसहशाळामां पण एज विधि जणावी छे। अने सां तो कांइ गुरु छे नहि. हवे अंते "ए सामायिकनी विधि एम निगमन कर्यु छे ते पण कई पडावश्यकने बाघ करतुं नथी. कारण के आवश्यक निर्युक्तिम पण काउसगनिर्युक्तिथी काउसगनी प्रस्तावना करी वच्चे साधुना आवश्यकनी विधि कही छेल्ले सामायिकनुंज निगमन कर्तुं छे. " वळी इहां "घरेथीज सामायिक लइ एम कनुं छे ते ए आशये के उपाश्रये जवा जेटलो काळ पण सामायिक वगर पसार करवो न जोइये तेथी घरेथी फक्त सामायिकसूत्र उच्चरी शेष अनुष्ठान साधु पासे जइ करवु. कोइ एम पूछे के घरेज बधुं अनुष्ठान करीने साधु पासे जाय तो शुं ? तेनुं ए उत्तर छे के इहां साधु पासे करवाना अनुष्ठाननी

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