Book Title: Shatpadi Bhashantar
Author(s): Mahendrasinhsuri
Publisher: Ravji Devraj Shravak

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Page 169
________________ शतपदी भाषांतर. (१४९) ( जिनवल्लभनी नवी आचरणाओ. ) (१) हरिभद्रसारिए पंचाशकमां वीरना पांचज कल्याणिक कह्या ___ छ; अने अभयदेवमूरिए पण सां तेटलाज चा छे. छतां जिनवल्लभे छठं कल्याणिक प्ररूप्यु. (२) जिनेश्वरसूरि वगेराए एकवडी मोपती नोती करावी. (छतां जिनवल्लभे तेम करावी). (३) अभयदेवसूरिए चैत्यवासिओनी निंदा नथी करी; उलटा चैत्यवासि नितिगच्छवाळा द्रोणाचार्य पासे पोताना करेल ग्रंथो शोधाव्या छे. छतां जिनवल्लभे संघपटकमां तेमनी खू ब निंदा चलावी. (४) जिनवल्लभे संघपटकमां जिनबिंबने बिडिशपिशित एटले कां टामा राखेल मांसनी अत्यंत निंदवा लायक उपमा आपी छे तथा संघने वाघनी उपमा आपी छे तेवी उपमा तेमनी अगाउ कोइए नथी आपी. (५) वळी मुविहिताए पोतानी प्रशस्ति के पोताना ग्रंथो शिळाओमां कोतराववानो पृथ्वीकायनी विराधनाना भयथी निषेध कर्यो छे. छतां जिनवल्लभे चितोडमां वीरस्वामिना चैत्यमां छाजानी नीचेना बधा प्रस्तारोमा पोताना करेला चित्रबंध काव्यो तथा चैत्यना द्वारनी बे बाजुए एक शिलामां धर्मशिक्षा ग्रंथ अने बीजीमां संघपट्टक कोतराववानुं काम कबूल राख्यु. (६) वांदणाना आवतॊमां करपरावर्त्त पण अभयदेवसूरिए नथी कराव्यो, किंतु जिनवल्लभे कराव्यो. (जिनदत्तनी नवी आचरणाओ.) जिनदत्तमूरिए तो पूर्वाचार्योनी आचरणा तथा जिनवल्लभ

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