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शतपदी भाषांतर.
( १११ )
भक्तिवाळा होय तेवा कुलोमां साधुए जे चीज लेवी ते जोइ त - पाशीनेज लेवी. कारण के तेवा कुलो बहु प्रीतिना कारणे कदाच सदोष आहारपाणी पण करी राखे.
ओघनियुक्तियां कां छे के गीतार्थीए धार्मिक श्रावकोने एपणाना दोष तथा अभिग्रहविशेष कही बताववा. ए ऊपरथी पण जणाय छे के परिचित श्रावकोना घरथी पण मुनि बहोरी शके छे.
वळ विचार करो के जो श्रावकना घरेथी मुनि वहोरेज नहि एम होय तो श्रावकनुं बारमुं अतिथिसंविभागवत केम थई शके ? तेमज भवदेवे स्वजनना घरेथी वहोर्यु, शाळिभद्रे माताना घरेथी बहोर्यु, इत्यादि बातो केम घंटे ?
तथा निशीथचूर्णिमां कह्युं छे के ज्यां साधुओ जतां आवतां शंकादिक नहि थाय एवा भावितकुलोमां कारणे मुनि बेवार के त्रणवार पण जाय. वळी बीजा स्थळे लख्यं छे के जे श्रावको सा घुसामाचारी जाणता होय तेमणे मुनिने कहेवुं के तमो एक शय्यातर स्थापो त्यारे मुनि तेम करीने बीजाओना घरे वहोरवा जाय.
वळी भगवतीमा श्रावकोना विशेषणोमां कह्युं छे के श्रमण निर्ग्रथने शुद्ध आहार पाणी वगेरा आपता थका श्रावको विचरे छे.
विचार ९० मो.
प्रश्नः - तमे ऊपर कही चूक्या के यति श्रावकना घरेथी पण वोरे सारे अमो कहीये छीये के “यतिने श्रावकना घरो शिवाय बीजे भिक्षा लेवीज नहि कल्पे," एवो नियम पाडी शकाय के नहि !
उत्तरः- एवो नियम थायज नहि; कारण के मुनिओ तो गामेगाम अप्रतिबद्धविहार करनार होय छे, अने साथै आहार